[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक ‘जागृत’ तो हैं परंतु ‘जीवन’ में कुछ कर नहीं पाते ! [2] जरा सोचो‘आत्मबल’ बढ़ाना है तो ‘कठिन परिस्थितियों’ में ‘संघर्ष’ जरूरी है ,इस ‘बहुमूल्य संपत्ति’ को जिसने भी ‘खोया’, ‘उभर’ नहीं पाया ! [3] जरा सोचो‘अपनों’ से ‘अपनों की तरह’ मिलोगे, ‘आनंद’ दोगुना हो जाएगा,जो ‘दिखावे’ को …
