[1] जरा सोचो अगर आपस में ‘रूठे’ रहे, ‘मनाने’ की व्यवस्था खत्म, ‘चुप्पी’ को तोडो, ‘हर बात’ दिल से लगाना ‘उचित’ कहां ? [2] जरा सोचो ‘मुंह पर कुछ- पीठ पीछे कुछ’ वालों से ‘सावधान’ रहिए, ‘किसी के सगे’ नहीं होते, उनके पास ‘धोखा ही धोखा’ है ! [3] जरा सोचो उम्र से बूढ़ा जरूर हूं , पर तन मन …
‘आपस में रूठे’ रहे तो ‘मनाने’ की ‘व्यवस्था खतम’ , ‘मिल कर जियो’ तो जीना है |
