[1] जरा सोचो ‘ना ‘ परिस्थितियों ‘ से हारा , ना अपनी ‘ उम्र ‘ से हारा, ‘उन्नति के रास्ते’ तलाशते रहना, ‘फितरत’ है मेरी जनाब’ ! [2] जरा सोचो ‘ जिसकी कमाई में ‘पाप’ भरा है, ‘सुख’ का जीवन ‘जी ‘ नहीं पाता, ‘उसे भेड़िया’ समझो जो सिर्फ ‘धोखा’ परोसता है ‘,’ खून ‘ पीता है ‘ ! [3] …
उन्नति के रास्ते तलासते रहो , मंज़िल भी मिल जाएगी ‘ |
