[1] जरा सोचो ‘दुआ करो या बद्दुआ, ‘दिल’ से करो, ‘सिरे’ चढ जाएगी, किसी को ‘बद्दुआ’ मत देना, तुम्हें भी ‘बद्दुआ’ लग जाएगी ! [2] जरा सोचो ‘ख्वाब’ में ही सही,आपने अपनी ‘सूरत’ तो दिखा दी , ‘ख्वाब’ ही ना होते तो , ‘ हसरत ‘ अधूरी रह जाती ! [3] जरा सोचो ‘ माया ‘ मन का खेल और …
‘किसी को ‘बददुआ’ मत देना , तुम्हें भी ‘बददुआ’ लग जाएगी | कुछ समयोचित छंद |
