[1] जरा सोचो कोई ‘ जख्मी ‘ दिखते ही ‘ रफू ‘ करने को ‘ बेचैन ‘ रहता हूं , ‘ आदत ‘ है मेरी, कितने ‘ बेशुक्रे ‘ हैं लोग, कहते हैं- अपना ‘ उल्लू ‘ सीधा करने आया है शायद ! [2] जरा सोचो ‘ दौलत ‘ मिल ‘ बेकाबू ‘ हुए, ‘सम्मान’ मिलत ‘पगलाय’, ‘उपदेश’ देत फिरत …
‘रोज की जिंदगी के कुछ पहलू , खुद को सुधारिए , सब कुछ सँवर जाएगा |
