[1] जरा सोचो यदि ‘तुम्हें’ ना ‘अपनों’ की ‘कद्र’ ना ‘दौलत’ की,’अधोगति’ ही पाओगे, जिसने दोनों ‘गवां’ दिये, उसे कभी ‘संयत जीवन’ जीना नहीं आया ! [2] जरा सोचो ‘गुस्सा’- ‘मस्तिष्क’ पर भारी होगा तो ‘फैसले’ गलत ही होंगे, ‘शांत स्वभाव’ की ‘शीतल छत्रछाया’- सही ‘राह’ पर ले जाएगी ! [3] जरा सोचो न ‘ आशीर्वाद ‘ दिखता है न …
‘आशीर्वाद’ और ‘भरोसा’-‘गुलाब सी खुशबू’ फैलाते हैं , ‘हानिकारक’ कुछ भी नहीं |
