[1] जरा सोचो ‘दूसरों’ को सुनना , समझना , और सम्मान देना, ‘आदत’ बना अपनी, यह ‘सफलता का सोपान’ है, ‘संगठित’ परिवार की संपूर्ण ‘व्याख्या’ है ! [2] जरा सोचो रोज ‘मंदिर’ में ‘माथा’ टिका कर, ‘धर्मराज’ बनने की कोशिश ना कर, बस ‘सत्कर्म’ की झड़ी लगा, किसी के ‘काम’ आ, जिह्वा से ‘अमृत’ टपका ! [3] जरा सोचो ‘राधे’ …
‘राधे’ का नाम ‘शक्ति’, ‘कृष्ण’ का नाम ‘भक्ति’ है, राह ‘सुमरण’ की पकड़ |
