[1] हमारे देश में ‘जब बैंक’ सरकार के कानून धता कर, अपनों को ‘दौलत’ लुटाते हैं, ‘धन की लूट का दूध’ रोज पिलाते हैं , तो हम क्यों नहीं पिए`, ‘हराम का हलवा ‘ किस को बुरा लगेगा , वह तो कोई बताएं , ‘देश’ को खूंटी पर टांग कर , हम सभी ‘ माल्या’ बन गए हैं अब’ ! …
“समझिए क्या हो रहा है अपने देश में “
