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Home कविताएं उदासी की कविताएँ

उदासी की कविताएँ

‘कोरोना संक्रमण’ से बचो , घर में कुछ दिन रहो , सब कुछ ठीक हो जाएगा |

By Tarachand Kansal
May 13, 2020
in :  उदासी की कविताएँ, ज़रा सोचो, जीवन शैली, प्रेरणादायक कविता, सलाह, सामान्य ज्ञान, सुविचार, सेल्फ इम्प्रूव्मन्ट
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[1] ‘ना  ‘फूलों’  की  भांति  ‘खिलते’  हो, ना  ‘खुशबू’  की  तरह  ‘बिखरते”  हो, ‘घिसट  कर’  जी  रहे  हो  आजकल, ‘ कारोना  की  दहशत’  भयानक  है’ ! [2] ‘बिना  किए ‘तंदुरुस्ती’ खराब  थी, ‘कामवाली’  ने ‘काम  करना’ सिखा  दिया, ‘हाथ  जोड़ना, नमस्ते  करना, बिना  रुके ‘करोना’  ही ‘सिखाता’  चला  गया’ ! [3] कोरोना   का   कहर ‘हर  गाड़ी  पर’ लिखा  होता  था, …

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“जरा सोचो ” कुछ छंद !

By Tarachand Kansal
May 20, 2018
in :  उदासी की कविताएँ, कविताएं, ज़रा सोचो, प्रेरणादायक कविता, शायरी, सेल्फ इम्प्रूव्मन्ट
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[1] “दोस्तों सोचने का ढंग बदलना होगा “:- ‘हमें सोचने का ढंग बदलना होगा’ ,’ सुचिता का परिचय देना होगा ‘, ”मेरे साथ धोखा हुआ ‘ ‘यह पकड़ कर बैठ गए’ ,’ संबंध बिगाड़ लिए ‘, ‘आक्रोश से ऊर्जा नष्ट होती है’,’खुद के बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है’ , ‘विश्वास का पौधा लगाओ’ ,’ हमारा दर्द धीरे-धीरे घटता चला …

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“लगता है दोस्त अब थकने लगे हैं ” !

By Tarachand Kansal
March 18, 2018
in :  उदासी की कविताएँ, जीवन शैली, मित्रो की कविता
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साथ साथ जो खेले थे बचपन में  वो सब दोस्त अब थकने लगे है किसीका पेट निकल आया है किसीके बाल पकने लगे है सब पर भारी ज़िम्मेदारी है सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है दिनभर जो भागते दौड़ते थे वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है उफ़ क्या क़यामत हैं सब दोस्त थकने लगे है किसी को लोन …

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“ऐ सुख “”तू कहाँ मिलता है “? “क्या तेरा कोई स्थायी पता है “?

By Tarachand Kansal
March 3, 2018
in :  उदासी की कविताएँ, जीवन शैली, प्रेरणादायक कविता
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ऐ  सुख  तू  कहाँ  मिलता  है  ? क्या  तेरा  कोई  स्थायी  पता  है  ? क्यों  बन  बैठा  है  अन्जाना   आखिर  क्या  है  तेरा  ठिकाना । कहाँ  कहाँ  ढूंढा  तुझको  पर   तू   न  कहीं   मिला   मुझको ढूंढा   ऊँचे   मकानों   में  बड़ी   बड़ी   दुकानों   में स्वादिस्ट   पकवानों   में  चोटी  के   धनवानों  में वो   भी   तुझको   ढूंढ   रहे   थे  बल्कि  मुझको  ही   पूछ  …

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“मैंने दहेज नहीं मांगा ” कविता संकलन

By Tarachand Kansal
December 22, 2017
in :  उदासी की कविताएँ
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*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”* साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, *पर यकीन मानिए साहब ,* *“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”* मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। …

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“बुजुर्गों का एकाकीपन -एक अहसास है “|

By Tarachand Kansal
November 28, 2017
in :  उदासी की कविताएँ, ज़रा सोचो
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आदरणीय  श्री  सत्य प्रकाश  पारीक  जी  के  सौजन्य  से :- :- बुजुर्ग   आज   एकाकीपन   के   सन्नाटे      में  हैं   |   नई   पीढी अपना   पेट   भरने   या   धन   कमाने   की   होड़    में   घर    से   दूर ,  विदेशो        तक    में    पडी   है  ||  बुजुर्गो   के  ज्ञान    व   अनुभव   का   कोई   उपयोग      …

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“दुनियाँ से गिला क्यों जब खुद का शरीर साथ नहीं देता” |

By Tarachand Kansal
October 3, 2017
in :  उदासी की कविताएँ, ज़रा सोचो
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“खुशी  में  – दसों  उँगलियाँ   ताल   ठोकती   थी ” , ” पौबारह   थे   हमारे ” , “उलझनों  ने  पिंगे  बढाई”,”रो पड़े”,”एक  उंगली  उठी  आंसूँ  पोंछ  डाले “, “दुखों  में  खुद  का  पूरा  शरीर  साथ  नहीं  देता” ,” मैदान  छोड़  जाता  है” , “फिर  दुनियाँ  का  गिला  क्या  करना” ,”और क्यों  उम्मीद  करे  बैठे  हैं ” ?

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‘दहेज पर एक व्यथा ‘ मजबूर आदमी की ज़बानी |

By Tarachand Kansal
September 6, 2017
in :  उदासी की कविताएँ, प्रेरणादायक कविता
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*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”* साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, *पर यकीन मानिए साहब ,* *“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”* मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। …

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“विश्व की सबसे लंबी समुद्री सुरंग “- कहाँ है ,जानिए !

By Tarachand Kansal
July 26, 2017
in :  उदासी की कविताएँ, ज्ञान, विज्ञान (टैकनोलजी), सफलता की कहानी
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पहाड़ों   में   बनी   सुरंग    तो   आपने   देखी   होगी   या   उसके   विषय   में   सुना    होगा   परंतु    आपको  जानकर   बहुत   आश्चर्य    होगा   कि   समुद्र   की   गहराई    में   भी    सुरंग   होती   है  | पहाड़ों   को …

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मैं नहीं रोया , वो समझे कोई गम नहीं मुझको —

By Tarachand Kansal
June 7, 2017
in :  उदासी की कविताएँ, कविता
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‘दर्द  में  भी  मैं  नहीं  रोया ‘ , ‘वो  समझे ‘ ‘मुझे  कोई  गम  नहीं  हैं ‘ , ‘अब   तो   गम  छुपा  कर’ , ‘शांत  रहने  का  ज़माना   आ   गया   ‘|

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