[1]
‘अभी ‘बचपना’ जिंदा है या ‘बुढ़ापा’,
‘मेरी समझ से बाहर है,
‘मस्त होकर ‘जीने की तमन्ना’ है,
‘जिसमें ‘वेतकल्लुफी’ भी हो’ !
[2]
‘मयखाने का सन्नाटा’ चिल्ला चिल्ला कर यह बताता है,
‘अब ‘मय ‘ कौन पीता है ? ‘खून पीने का’ जमाना आ गया’ !
[3]
‘जब ‘जनाजे’ को कंधा लगाया, ‘एक कराहती’ आवाज सी आई ,
‘सहारा मत दो ,जाने दो, ‘जिंदा’ होकर सिसकने की इच्छा नहीं ‘ !
[4]
‘खुद पर ‘विश्वास’ ना करें तो , फिर किस पर करें ?
‘कितना भी संभल कर चलें, ‘ठोकर’ लग भी जाती है’ !
[5]
‘आज समय ने ‘दर्द’ दिया है, ‘समय ही ‘इलाज’ भी बताएगा,
‘समय की ‘धार’ बहुत पैनी है, ‘शांत’ रहने की जरूरत है’ !
[6]
‘लोग रोज कहते थे,
‘बहुत काम है, ‘मरने की फुर्सत नहीं,
‘आज सभी घरों में छुपे रहते हैं,
‘ सिर्फ मरने के डर से’ !
[7]
‘ इंसान इंसान से डरेगा , ‘ अंतर बना कर चलेगा,
‘ख्वाब में भी सोचा न था, ‘यह वक्त भी देखेंगे हम’ !
[8]
‘ईश्वर की ‘महिमा’ को देख, ‘मिटते नहीं ‘भाग्य’ के लेख,
‘ सुकर्मों’ से पीछे न हट, ‘अपना ‘भाग्य’ बदलते देख’ !
[9]
‘बहुत ‘ गुस्ताखियां ‘ कर ली , ‘ चलो ‘ रचनात्मक पथ ‘ पर चलें,
‘किसी के काम आ जाएं’, ‘मौत के नजदीक’ आते जा रहे हैं हर घड़ी’ !
[10]
‘चेहरे पर ‘मुस्कुराहट’ आते ही, ‘शक्तिशाली’ सा लगने लगा,
‘बुझ कर’ कोई जीना नहीं होता , ‘ खिलखिलाता चल’ !