[1]
‘संघर्षों के बीच’ जिसने अपने को ‘संभाला’, वही ‘बलवान’ है,
‘जिसने अपना ‘धीरज’ खोया , ‘सब कुछ खो दिया समझो’ !
[2]
‘हमारा ध्यान’ संसार को देखने, सुंघने, सुनने, चखने ,स्पर्श में लगा है,
‘आंतरिक आंख’ खुलती नहीं, ‘कान’ सुनते नहीं, ‘दिव्य दर्शन’ कैसे हों ?
[3]
‘हाथ पैर’ नहीं हिलाओगे तो ,’टुकड़ा’ मुंह में नहीं आ पाएगा’ !
[5]
‘योग- संयोग’ ‘हानि लाभ’ ‘जीवन- मृत्यु’ हर जीवन में है,
‘हाथ- पैर’ नहीं हिलाओगे, ‘कर्मकार’ नहीं बनोगे तो डूबोगे,
[6]
‘अगर उड़ने लगे’ ‘गिराने वालों की’ लाइन लग जाएगी,
‘ अगर गिर गए तो , ‘ उठाने वाला ‘ कोई नहीं होगा ‘ !
[7]
‘तुम्हारी परवाह’ है हमको परंतु ,
‘आप ‘नजरअंदाज’ करते नहीं थकते,
‘जब हम नहीं होंगे’ तब समझोगे, ‘क्या खो दिया तुमने’ ?
[8]
‘बिना दिखावा’ ‘ बिना मतलब’ भी किसी से मिला करो,
‘खुदगर्जी’ छोड़कर जब मिलोगे,’सिर पर बिठा लेंगे तुझे’ !
[9]
‘अवांछित अडियलपन’ शोभा नहीं देता, ‘तार्किक भी नहीं,
मौन, गंभीर और मितभाषी’ को ही, ‘ विद्वान ‘ कहते हैं ‘ !
[10]
‘दूसरे को समझ पाना’ और ‘खुद का’ दूसरे हो एहसास कराना,
‘हमारी दोनों अभिव्यक्ति’ ‘समाज की स्वीकार्यता’ पर निर्भर है’ !