जरा सोचो
‘हवा में लट्ठ’ बहुत चला लिया, कुछ ‘काम की बात’ भी करो,
‘विनयशील’ और ‘विवेकी’ बनकर ‘शिखरों” को छूने की कोशिश करो !
[2]
जरा सोचो
‘तुममें’ कशिश तो है,’हमारा ध्यान’ केवल तुम्हारी और है,
‘स्नेह का पौधा’ लग गया शायद ,’अंजामे गुलिस्ता’ क्या होगा ?
[3]
जरा सोचो
‘स्नेह का पौधा’ लगाया है तुमने, ‘सींचते’ भी रहना,
सही ‘खतवार’ सही ‘रखवाल’ ‘युवा’ बनाए रखेगी तुम्हें !
[4]
जरा सोचो
किसी के लिए ‘मोहब्बत’ ‘भूल’ है, किसी को ‘कबूल’ है,
‘हर कोई’ अपने अनुसार ‘आंकता’ है, यह ‘फलसफा’ आज तक नहीं बदला !
[5]
जरा सोचो
तुमने जो ‘रोशन’ किया ‘दीपक’, हम ‘जलाए’ रखेंगे,
चलो ‘कब तक’ सताओगे ? तुम्हें भी ‘देख’ लेते हैं !
[6]
जरा सोचो
‘झुक’ कर ही ‘आशीष’ मिलता है सबसे,
‘अकड़खां ‘सिर्फ ‘अकड़ते’ हैं, ‘मिलता’ कुछ भी नहीं !
[7]
जरा सोचो
कमरे का ‘दरवाजा’ खुला हो, ‘खटखटा’ कर जाना पड़े,
‘रिश्तों की दूरी’ का प्रारूप समझो, कोई ‘झुठला’ नहीं सकता !
[8]
जरा सोचो
सदा ‘मुस्कुराते’ आए हैं, ‘खिलखिलाना’ भी तुमने सिखाया,
किसी और ‘तोहफे’ की जरूरत नहीं, ‘जिंदादिल’ ही ‘बिदा’ होंगे !
[9]
जरा सोचो
कुछ तो ‘कशिश’ है ‘तुझमें’, सिर्फ तेरे ही ‘ख्वाब’ आते हैं,
पूरा ‘जहां’ ‘झकझोर’ डाला, ‘तुमसा दिलदार’ मिला नहीं कोई !
[10]
जरा सोचो
‘दौलत’-‘ जीवन स्तर’ को बदल डालती है,’ सम्मान ‘ करो,
परंतु ‘व्यवहार, बुद्धि और नियत’,को ‘बदलना’ भी बेहद जरूरी है !