[1]
‘आप हैं और हम हैं, तभी ‘ रिश्तो का अहसास’ जिंदा है,
‘मैं सिर्फ मैं रहा, तू सिर्फ तू रहा, ‘एहसास’ कैसे जागेगा बता’ ?
[2]
‘जिम्मेदारी के बाजार में , हकलाये पड़े हैं हम सभी,
‘दो घड़ी ‘आराम का मौका, बमुश्किल नसीब होता है, !
[3]
‘ फुर्सत के पल कहीं नहीं मिलते,
‘धक्का-मुक्की का जमाना है,
‘ताउम्र फुर्सत ढूंढते निकल गई,
‘मरने की फुर्सत नहीं’ !
[4]
‘गुलाबी होंठ’, गुलाब की भांति, नशीले जरूर हैं,
‘पर वह भभकते हैं, गुलाब की शीतलता नहीं’ !
[5]
‘हर पल आनंददायक समझ कर, जीवन को भोगिये,
‘अगला पल’ भूतकाल होगा ,’उसे ढूंढते रह जाओगे’ !
[6]
‘राग द्वेष’ से भरे प्राणी की आत्मा,
‘जकड़ी सी रहती है,
‘दुनिया के प्रपंच’ उसे आराम से,
‘कभी जीने नहीं देते’ !
[7]
‘प्रेम से देखोगे तो ‘मित्र’,’द्वेष भावना से देखोगे तो ‘शत्रु’,
‘नजर के अंदाज, क्लीन बोल्ड करने में देर नहीं करते’ !
[8]
‘द्वेष भाव’ को तिलांजलि तो दो,’गुलाब की तरह खिल जाओगे,
‘अपनेपन का एहसास’ ‘गुलाब सी खुशबू, फैलाता जरूर है’ !
[9]
‘स्वस्थ हो ,संतोषी हो ,और ‘वफादारी’ से भरपूर प्राणी हो,
‘सौ साल तक जीओगे ‘, ‘डंके की चोट पर ऐलान है’ !
[10]
‘दुनियां की मत सुनो , ‘अंदर की आवाज कान खोलकर सुनो,
‘हीन भावना त्याग, कर्मकार बनते ही, भाग्य के द्वार खुल जाएंगे’ !