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ज़रा सोचो ” क्या चिंता करना हितकर है ?

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” चिन्ता ” एक  ऐसी  धुन  है  जो  आदमी  को  अंदर   ही  अंदर  खोखला  बना   देती   है  | ” चिता  ‘ और ” चिन्ता ”  में  सिर्फ  एक  बिन्दु   का  अंतर   है | ‘ सफलता ‘ और   “असफलता ”  दोनों   हेतु  ‘ चिन्ता ‘  करना  व्यर्थ  है  |  इससे  सहायता  नहीं  मिलती  बल्कि  समस्या  सुलझाने   में   ही  अपनी  शक्ति  समाप्त  कर  डालते  हैं  |  फिर  ज़रा  सोचो — ” क्या  चिन्ता  करना   हितकर   है  ” ?

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