जहां अपनापन महसूस होता है , वहाँ सब अपने होते हैं ,
जब स्वार्थ करवट बदलता है , सब अद्रश्य हो जाता है ,
उनकी चपलता समझ नहीं पाते , भावुक हो जाते हैं ,
उनका मुखौटा हर पल रंग बदलता है , समझ ही नहीं पाते ,
उनका शातिरपन गहराई तक होता है , बनावटी हँसते हैं ,
हम उनके सिर्फ मोहरे होते हैं , वे चाल चलते जाते हैं ,
हम बिना मोल के बिक जाते हैं , वे कठोर दिल के होते हैं ,
इस परिदर्ष्य में जो उनको चाहिये , प्राप्त कर लेते हैं ,
जब तक उनको पीड़ा न हो , होठ नहीं फड़फड़ाते कभी ,
दोस्तों,’ होली मे ‘ ऐसा रंग लगाओ ,ये इस ‘गंदगी को छोड़े’ ,
हर किसी को ” प्यार की सौगात ” दो , “अपनेपन का गुलाब दो ” |