[1]
जरा सोचो
‘ मन मंदिर’ अशुद्ध रखते हो, ‘मंदिर’ में खूब चढ़ाते हो,
‘तमन्ना’ पूरी नहीं होगी, चाहे जितना जोर लगा लेना’ !
[2]
जरा सोचो
‘ अपनेपन का एहसास’, ‘अपनापन’ लिए रहता है हर जगह ,
‘न अपना न पराया, न जात न जज्बात’, सिर्फ ‘प्यार’ पलता है’ !
[3]
जरा सोचो
‘कितना भी ‘फैशन में उड़’, कितना भी ‘जादू बिखेर’,
‘कोई असर नहीं होगा,सिर ‘झुका कर’ चलने का ‘आनंद’ समझ’ !
[4]
जरा सोचो
‘साहसी’ की मृत्यु एक बार होती है, ‘भयभीत व्यक्ति’ रोज मरता है,
‘वह खुद को ‘असहाय और लाचार’ समझ, ‘जूझने की हिम्मत’ ही नहीं जुटा पाता’ !
[5]
जरा सोचो
‘चुनौतियों’ को स्वीकार कर ‘जूझने का साहस’ पराक्रमी बना देगा,
जो ‘परेशानियों’ का समाधान करते हैं, उन्हें ‘मौत का भय’ नहीं सताता’ !
[6]
जरा सोचो
मेरे ‘विचारों की मीनार’ बड़ी ऊंची है, आसानी से नहीं ‘गिर’ पाऊंगा,
‘आपका ‘टांग’ फसाने का प्रयास, कभी ‘सफल’ नहीं होगा जनाब’ !
[7]
जरा सोचो
‘बुरे वक्त की तासीर’ में ‘कामयाबी के गुर’ छिपे मिलते हैं,
‘जांबाज’ होने का सबूत देते रहो, ‘सफलता’ चूम ही लेगी तुम्हें’ !
[8]
जरा सोचो
‘हौसला अफजाई’ कोई दवा नहीं_’ पर ‘दवाई’ से कम भी नहीं,
‘ इरादों ‘ को पंख लगा कर ‘कामयाबी के रास्ते’ खोल देते हैं’ !
[9]
जरा सोचो
‘छोटे दिल’ वाले आसानी से किसी की ‘तारीफ’ नहीं करते,
‘अपनेपन’ का ढोंग रचते हैं, ‘सदा ‘खिचखिचाये’ से मिलते हैं’ !
[10]
जरा सोचो
‘न विवादों’ में फसों न ‘शिकवे शिकायत’ करो,
‘विरोध’ करने हेतु ‘चुप रहना’ भी ‘अच्छा विकल्प’ है’ !