[1]
‘एक-दूसरे के प्रति सदभावना ही धर्म है ‘,’कायाकल्प का स्वरूप है ‘,
‘इंसान ही इंसान के दुःख-दर्द समझ सकता है ,उन्हें बाँट सकता है ‘|
[2]
‘धर्म-हमारी वाणी को,विचारों को , आचरण को दिव्यता प्रदान करता है ,
‘ हर इंसान में प्यार , करुणा , दया जैसे गुणों का प्रवेश कराता है ‘ |
[3]
‘जहां दिल में अहंकार , घ्रणा , हक छीनने की भावना नहीं होगी ‘,
‘अपने-पराए का भेद नहीं होगा’ ,वहाँ मानवता का रुतबा बुलंद रहता है ‘|
[4]
‘धर्म- गिरते को उठाता है , किसी को गिराता नहीं ‘,
‘धर्म- प्राण देता है कभी किसी के प्राण लेता नहीं ‘|
[5]
‘लगातार आबादी बढ़ रही है फिर भी सब अलग से नज़र आते हैं ,
‘पहले आदमी कम थे फिर भी मिलजुल कर जीवन बिताते थे ‘|
[6]
‘तुम किसी का भला नहीं कर सकते , तो बुराई करना भी बंद करो ‘,
‘खुद को संभाल कर खामोश रहोगे तो ,’भलाई का कारण बन जाओगे ‘|
[7]
‘अपनी भक्ति , अपनी शीतलता और अपने संतोष में सब को रंगो ‘,
‘क्रूरता , उड़ंदता , उत्पीड़न की भावना देखते ही देखते उड जाएगी ‘|
[8]
‘अपना अधिक समय बैर ,ईर्ष्या ,जलन की भावनाओं में ही बिता दिया ‘,
‘ बचा जीवन ही सार्थक बना ‘ , ‘ नपुंसक हो कर जिया तो क्या जिया ‘|
[9]
‘जीवन में कितनी अनचाही होती है’ ,
‘कितनी ही विपरीत परिस्थिति आती हैं ,
‘गुलाब की भांति खिले रहो’,
‘राहत और सकुन में नहाये रहोगे ‘|
[10]
‘मजहब ,जाति , प्रांत की दीवारें ,
‘हमें ओछा बनाए रखती हैं ‘,
‘हेराफेरी में उल्झे रहते हैं ,
‘इंसानियत रसातल सूंघ लेती है ‘|