[1]
जरा सोचो
‘ यू ‘ दुनिया ‘ जीने को जीती है , ‘ खुशी ‘ से जीती रहे,
‘बस ‘आप’ किसी के ‘दर्द का कारण’ ना हो, ‘ऐसे कर्म करना’ !
[2]
जरा सोचो
‘आनंद’ का सभी ‘आनंद’ लेते हैं, ‘दुख’ सभी ‘अकेले’ झेलते हैं,
‘काश समाज की ‘व्यवस्था’ बदल जाती, ‘ समभाव’ में जीते सभी’ !
[3]
जरा सोचो
‘सुख दुख’ तो जीवन के साथी हैं, ‘ परिपूरक ‘ हैं,
‘ रिश्ते’ खूबसूरती से निभाने ‘सीख’ लेनी चाहिए’ !
[4]
जरा सोचो
‘सदा उत्तम कार्य करो’ का उद्घोष करके , मैं आगे बढ़ता रहा,
‘कभी कुछ ‘गलत’ नहीं किया, ‘कम से कम इतनी तो तसल्ली है’ !
[5]
जरा सोचो
‘सारे जमाने को ‘पढ़’ नहीं सकते ,’हालात बहुत कुछ ‘सिखा’ देते हैं,
‘हालात’ हमारे अनुसार हो जाएंगे , ‘बशर्ते कुछ ‘सुकर्म’ तो करते रहें’ !
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जरा सोचो
‘कहते हैं ‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए’,
‘ सोच कर’ बोलोगे तो फिर ‘पछताना’ किसलिए ?
[7]