Home कविताएं देशभक्ति कविता “हम तो ज़िंदा भी मरे बराबर हैं ” !

“हम तो ज़िंदा भी मरे बराबर हैं ” !

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“प्रदूषण  , रेडिएशन  ,  मिलावट    और     भष्टाचार ” ,

“हम ,  मौत   के   मुंह   मे    धकेले   जा   रहे   हैं    रोज़ ” ,

“समाधान   बताने   वाले   ही’ , समस्या    बने   बैठे    हैं ‘,

‘भयंकर  रोगों  के  कारण  हम’ , ‘जिंदा  भी  मरे  बराबर  हैं ‘| 

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