Home ज़रा सोचो ‘हमारी मानसिकता – सोच में विरोधावास ! जरा जानिए और सोचिए ‘

‘हमारी मानसिकता – सोच में विरोधावास ! जरा जानिए और सोचिए ‘

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हमारी मानसिकता ;

थौडी़   सी   बदल   जाए   दिखावे   का   फैशन   हो   चला  है   चाहे   सुख   अपना   खो   दें    पर   बदल   नहीं   पाते  । 

[1]

गाड़ियों   के   शोरूम   पर   जाईये  ,   नए मॉडल्स   पर    वेटिंग   चल   रही   है   ,   ग्राहकों   को   6-6  महीने   तक   गाड़ियों   का   इंतेजार  करना   पड़   रहा   है  ! चाहे   किस्त   न   भरने   के   कारण   रिकवरी   वाले   गाड़ी   उठा   ले   जाते   ।

[2]

रेस्टोरेंट   में   खाली   टेबल   नहीं   मिल   रही   है   , लाइन   लग   रही   है   बहुत   से   रेस्टोरेंटस   पर ,  चाहे   बाहर   के   खाने   से   स्वास्थ्य   खराब   कर  लें।

[3]

शॉपिंग  मॉल   में   पार्किंग   की   जगह   नहीं   है   इतनी   भीड़   है  परंतु   अनावश्यक   खर्च   करने   लोगो   पर    धौंस   गालिब   करने   की   प्रवृति   !

[4]

सिनेमा   हॉल   अच्छा   खासा   बिज़नेस   कर  रहे   हैं  नये   युवक – युवती  साथ – साथ   समय   बिताने   का   आश्रय    बेफजुल   खर्च   करके   पाने    की   कोशिश  में !

[5]

कई   मोबाइल   कंपनियों   के   मॉडल   आउट   ऑफ   स्टॉक   हैं  ,  एप्पल   लांच   होते   हुए   ही   आउट   ऑफ   स्टॉक   हो   जा   रहा   है  |

[6]

लोगों     को     नशेड़ी     हालात     ऑनलाइन    शॉपिंग    के   दौर   में   भी   और  वर्किंग   डे   में   भी   शाम   को   बाजारों   में   पैर   रखने   को   जगह   नहीं   है   1×1   फ्री  की प्रलोभन   में   फँस   कूड़ा   उठा  लाते  हैं   रोज   जाम   जैसे   हालात  पैदा  हो  जाते  हैं  कोई   पैदल   चलना   शान   के   खिलाफ   समझता  है   इसलिए   बीमारी ग्रसित   हो   ऑनलाइन   शॉपिंग   इंडस्ट्री   अपने   बूम   पर   है | 

[7]

धोखे   खाने    पर   दरवाजे   पर    आनलाइन   कर्मचारी   शान   समझते   हैं  मगर   लोगो   को   कह  रहे   हैं   कि   पट्रोल   १  रुपया   बढ़ने   से   ऊनके   कमर   तोड़   दी   है  जबकी   महीने   में   सिर्फ़  100 ₹   प्रति   माह   का   खर्च   ही   बढेगा  |

[8]

 मेरे  घर   में   जब   बेमतलब   की   लाइटें   जलती   रहती   हैं  ,  पंखा   चलता   रहता   है  ,   टीवी   चलता   रहता   है   तब   मुझे   कोई   तकलीफ   नहीं   होती परन्तु   बिजली   का   दाम   दस   पैसे   बढ़ते   ही   मेरी   अंतरात्मा   कराह   उठती   है  ।   जबकी   10000   करोड़   की   चोरी   हो   रही   है   देश   में   प्रति  माह पर   सुधरेगे  नही   जब   मेरे   बच्चे   सोलह   डिग्री   सेंटीग्रेड   पर   एसी   चला  कर   कम्बल   ओढ़  कर  सोते   हैं   जबकी   24   सेंटीग्रेड   पर   चले  तो   बिजली खर्च   30%   कम   हो   जाये   ।   अगर   तब   मैं   कुछ   नहीं   बोल   पाता   लेकिन   बिजली  का   रेट   10  पैसे   बढ़ते   ही   मेरा   पारा   चढ़   जाता   है  ।   जब मेरा   गीजर   चौबीसों   घंटे   ऑन   रहता   है   तब   मुझे   कोई   दिक्कत   नहीं   होती   लेकिन   बिजली   का   रेट   बढ़ते   ही   मेरी   खुजली   बढ़   जाती   है। 

[9]

जब   मेरी   कामवाली   या   घरवाली   कुकिंग   गैस   बर्बाद   करती   है   तब   मेरी   जुबान   नहीं   हिलती   लेकिन   गैस   का   दाम   बढ़ते   ही   मेरी   ज़ुबान   कैंची   हो   जाती   है  ।

[10]

रेड  लाइट   पर   कार   का   इंजन   बन्द   करना   मुझे   गँवारा   नहीं  ,   घर   से   दो   गली   दूर   दूध   लेने   मैं   गाड़ी   से   जाता   हूँ  ,   वीकेंड   में   मैं   बेमतलब भी   दस   बीस   किलोमीटर   गाड़ी   चला   लेता   हूँ   लेकिन   अगर   पेट्रोल   का   दाम   एक   रूपया   बढ़   जाए   तो  मुझे   मिर्ची   लग   जाती   है  ।

[11]

एक   रात   दो  हज़ार   का   डिनर   खाने   में   मुझे   तकलीफ   नहीं   होती   लेकिन   बीस- पचास   रुपए   की   पार्किंग   फीस   मुझे   बहुत   चुभती   है | 

[12]

मॉल   में  दस   हज़ार   की   शॉपिंग   पर   मैं   एक   रूपया   भी   नहीं   छुड़ा   पाता   लेकिन   हरी   सब्जी   के   ठेले   वाले   से   मोल  भाव   किए   बगैर   मेरा   खाना   ही  नहीं   पचता |  धनिया  – मिर्ची   फ्री  चाहिए |

[13]

  मेरे   तनख्वाह   रीविजन   के   लिए   मैं   रोज   कोसता   हूँ   सरकार   को   लेकिन   मेरी   कामवाली   की   तनख्वाह बढ़ाने   की   बात   सुनते   ही   मेरा  बीपी  बढ़   जाता   है   !! 

[14]

मेरे   बच्चे   मेरी   बात   नहीं   सुनते  तो    कोई   बात   नहीं   लेकिन   प्रधानमंत्री   मेरी   नहीं   सुनते   तो   मैं   उनको   तरह – तरह   की   गालियाँ  देता   हूँ  । 

[15]

मैं   आज़ाद   देश  का  आज़ाद   नागरिक   हूँ    पर   देश   के   लिए   कुछ  नहीं   करूंगा ,    सरकार   बदल  दूँगा   लेकिन   खुद   को  बदल  नहीं   सकता |

जय हिंद  !  जय भारत   !   जय जनता  ! 

 मित्र   सुबह   का   अभिवादन   आप  सभी   को  |  आप   स्वस्थ   प्रसन्न रहे   ।

सौजन्य से  – सर्वश्री  मानिक   लाल  जी   जायसवाल  – वाराणसी  !

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