[1]
‘किसी के लिए कुछ भी कर दो, ‘कृतज्ञता’ की झलक नहीं मिलती,
‘किसी दिन पतंग कट जाएगी , आप हाथ मलते ही नजर आओगे’ ।
[2]
‘दूरदर्शी ‘ बनकर जीवन की उलझी पहेली, सुलझाने का प्रयास रख,
‘अन्यथा ‘अपेक्षा और आशाओं’ के तूफान में , ‘जीवन नैया डूब जाएगी’ ।
[3]
‘कलाकार हो, कर्मकार हो, ‘उबर कर ऊपरी सतह पर आइए,
‘डगमगाना, डूबना’ या तरना, कैसे, क्यों, और किस लिए’ ?
[4]
‘दुष्प्रवृत्तियां, अशुद्ध आचरण,अशुभ चेस्टाओं से बचकर चलो,
‘ ये तूफान ‘उफान’ पर हैं , ‘इनका प्रवाह डुबो देगा तुझे ‘।
[5]
‘कठिनाइयों में ‘आदमी अकेला पड़ जाता है,
‘नज़दीकियां’ दूरियों में खूब बदलती देखी हैं,
‘ऐसे समय उसका ‘साहस’ ही काम आता है,
‘अंजाना होते हुए भी बहुत कुछ सीख जाता है’ ।
[6]
‘हम जो कुछ भी हैं , हमारे कर्मों का खाता है ,
‘कुकर्म’ चक्र है या ‘सुदर्शन’ चक्र ? हमारा ही निर्मित है,
‘कर्तव्यों की अवहेलना,अपनी दुंदुभी बजाना,भ्रामिक है,
‘अपनी ‘मैं’ को उभारना , किसी को भी शोभा नहीं देता ।
[7]
‘हे दाता ! मुझे इतनी खुशी देना,
‘जितने की जरूरत है,
‘ज्यादा खुशियां छलक जाती हैं ,
‘नजर खा जाएगी उनको’ ।
‘जितने की जरूरत है,
‘ज्यादा खुशियां छलक जाती हैं ,
‘नजर खा जाएगी उनको’ ।
[8]
‘कूड़े के ढेर पर पड़ी ‘रोटियां’, ‘हमें एहसास करा देती हैं,
‘जब इंसान का पेट भर जाता है,’अपनी ‘औकात’ भूल जाता है’ !
‘जब इंसान का पेट भर जाता है,’अपनी ‘औकात’ भूल जाता है’ !
[9]
‘अकड़ती तो ‘लाश’ भी है, ‘सभी उससे बचते हैं,
‘तुम खवामखां ‘तुर्रमखां’ बने बैठे हो, ‘नम्रता औढो’ !
‘तुम खवामखां ‘तुर्रमखां’ बने बैठे हो, ‘नम्रता औढो’ !
[10]
‘यदि आप अपनी शक्ति के अनुरूप, बोझ उठाकर आगे बढ़े,
‘दुर्गम मार्गो पर भी नहींडगमगाओगे, ‘मंजिलें पा जाओगे’ !
‘दुर्गम मार्गो पर भी नहींडगमगाओगे, ‘मंजिलें पा जाओगे’ !