‘जिस महफिल में लोग ‘ अपनी हैसियत’,
‘बयान करने लगें ‘,
‘खामोश ही रहें और मौका मिलते ही,
‘खिसकने में भलाई है ‘|
[2]
‘सुस्वभाव की कमाई ही मानव की सबसे उत्तम कमाई है ‘,
‘ यही कारण है जो सबके जहन में आ जाते हैं हम ‘|
[3]
‘स्नेह’ बोने में कोताही मत बरतना’ ,
‘एक दिन ‘समर्थ’ भी झुक जाएगा’|
[4]
‘ देर तक जागोगे तो ‘ सुख ‘ लौट जाएगा तेरे घर से ‘,
‘दिन’ में अगर सोने लगे तो समझो, घर की शांति खतम ‘|
[5]
‘हम इतना नीचे न गिरें ,
‘गिर कर उठ ही नहीं पाएँ ‘,
‘इतना ऊंचा भी न उठें ,
‘दो गज जमीन भी नसीब न हो पाये ‘|
[6]
‘राधा ने कन्हैया का हाथ क्या पकड़ा,
‘चतुर्मुखी शोभा बिखरने लगी’,
‘हम कितने अनाड़ी हैं जानते हैं फिर भी,
‘कान्हा से दूरी बनाए बैठे हैं|
[7]
‘जो राधा-कृष्ण का दीवाना हो गया’ ,
‘अपनी सुधबुध भूल गया ‘,
‘हर भक्त की ये ही पिपासा है’ ,
‘बस मुझे अपना बना ले वो ‘|
[8]
‘जब कन्हैया साथ हो’ ,
‘आंधियों से किसलिए डरना ‘?
‘राधे-राधे रटते रहो’ ,
‘आँधियाँ स्वम ही उड जाएंगी ‘|
[9]
‘ महफिल में गले मिलना ‘ ‘ मुहब्बत का सबूत नहीं है ‘,
‘गलतफहमी मत पालना’ ,’यह रश्मों-रिवाज का हिस्सा है ‘|
[10]
मेरा विचार !
“वरिष्ठों की सेवा , बेसहारा , जरूरत- मंद , बीमारियों से जूझते प्राणी हेतु आजकल सेवा भाव शून्य हो गया है | सिर आपाधापी का जमाना है और मानवता के कल्याण की भावना म्रतप्राय लगती है “|