Home जीवन शैली “हमारा स्नेह,स्वभाव,हैसियत,नसीब,प्रभु से प्रेम” ,”सब कुछ अलग है” ,”पहचानिए खुद को ‘!

“हमारा स्नेह,स्वभाव,हैसियत,नसीब,प्रभु से प्रेम” ,”सब कुछ अलग है” ,”पहचानिए खुद को ‘!

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[1]

‘जिस   महफिल  में  लोग ‘ अपनी  हैसियत’,
‘बयान  करने  लगें ‘,
‘खामोश  ही  रहें  और  मौका  मिलते  ही,
‘खिसकने  में  भलाई  है ‘|

[2]

‘सुस्वभाव  की  कमाई  ही  मानव  की  सबसे  उत्तम  कमाई  है ‘,
‘ यही  कारण   है   जो   सबके  जहन   में  आ   जाते   हैं   हम ‘|

[3]

‘स्नेह’  बोने  में  कोताही  मत  बरतना’ ,
‘एक दिन  ‘समर्थ’  भी  झुक  जाएगा’|

[4]

‘ देर  तक  जागोगे  तो  ‘ सुख ‘  लौट  जाएगा  तेरे  घर   से ‘,
‘दिन’ में  अगर सोने लगे  तो  समझो, घर  की  शांति  खतम ‘|

[5]

‘हम  इतना  नीचे  न  गिरें ,
‘गिर  कर  उठ  ही  नहीं  पाएँ ‘,
‘इतना  ऊंचा  भी  न  उठें ,
‘दो  गज  जमीन  भी  नसीब  न  हो  पाये ‘|

[6]

‘राधा  ने  कन्हैया  का  हाथ  क्या  पकड़ा,
‘चतुर्मुखी  शोभा  बिखरने  लगी’,
‘हम  कितने  अनाड़ी  हैं  जानते  हैं  फिर  भी,
‘कान्हा  से  दूरी  बनाए  बैठे  हैं|

[7]

‘जो  राधा-कृष्ण  का  दीवाना  हो  गया’ ,
‘अपनी  सुधबुध  भूल  गया ‘,
‘हर  भक्त  की  ये  ही  पिपासा  है’ ,
‘बस  मुझे  अपना  बना  ले  वो ‘|

[8]

‘जब  कन्हैया  साथ  हो’ ,
‘आंधियों  से  किसलिए  डरना ‘?
‘राधे-राधे  रटते  रहो’ ,
‘आँधियाँ  स्वम  ही  उड  जाएंगी ‘|

[9]

‘ महफिल  में  गले  मिलना  ‘ ‘ मुहब्बत  का  सबूत  नहीं   है ‘,
‘गलतफहमी  मत पालना’ ,’यह  रश्मों-रिवाज  का  हिस्सा  है ‘|

[10]

मेरा विचार !
“वरिष्ठों  की  सेवा ,  बेसहारा ,  जरूरत- मंद , बीमारियों  से  जूझते  प्राणी  हेतु  आजकल  सेवा  भाव   शून्य   हो   गया   है  |                       सिर  आपाधापी   का   जमाना   है   और   मानवता   के   कल्याण   की   भावना   म्रतप्राय   लगती   है  “|

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