Home ज़रा सोचो ‘स्वार्थ की नीव’ पर ‘संबंध’ स्थापित हो रहे हैं आजकल ‘, ‘मुस्करा’ कर ही ‘जीने की कोशिश’ करें |

‘स्वार्थ की नीव’ पर ‘संबंध’ स्थापित हो रहे हैं आजकल ‘, ‘मुस्करा’ कर ही ‘जीने की कोशिश’ करें |

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[1]

‘कोई जमाना था’ ‘ किसी का दर्द देख कर’ ‘रोते थे लोग’ ,
‘आज अपनों को’ ‘ रुला-रुला कर’ ,’ मुस्करा रहें हैं लोग ‘ |

[2]

जरा सोचो
‘कदम’ ‘पाप’ के हो या ‘पुण्य के, अपने ‘निशान’ जरूर  छोड़ते  हैं,
तुम्हारे ‘कदम’ जिस  तरफ  बढ़ गए , ‘वहीं  के’ हो  जाओगे यारों’ !

[3]

जरा सोचो
एक -मेरे पास दुनियां की हर कीमती वस्तु है और तुम्हारे पास ?
दूसरा -मैं सिर्फ अपने मां-बाप और स्वस्थ शरीर का मालिक हूं |
[4]
जरा सोचो
‘वफा’ की तलाश में जीवन ‘गवां’ दिया,’बेवफाई’ हाथ में आई,
पता लगा- जिस ‘हवा में सांस’ लेते थे, ‘जहर’ से लबालब थी’ !
[5]
जरा सोचो
‘आत्मविश्वास’ की  नाव  सवार, ‘मुसीबत’ की  नदी  में  नहीं  गिरते,
‘धीरज’ नहीं छोड़ते, हर पल का ‘आनंद’ लेने में कभी ‘हिचकते’ नहीं’ !
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जरा सोचो
‘स्वार्थ  की  नींव’  पर ‘संबंध’  विकसित  हो  रहे  हैं  आजकल,
‘ यारी’  या  ‘रिश्तेदारी’  की  ‘बुनियाद’  कमजोर  मिलती  है’ !
[7]
जरा सोचो
जानता  हूं  तुम  ‘बहुत  बुरे’  हो ,  किसी  की  ‘बात ‘ सुनते  ही  नहीं,
हम फिर भी ‘आशिक’ हैं तुम्हारे, तुम जो भी करते हो ‘जान’ लगा देते हो’ !
[8]
जरा सोचो
‘आशावादी  विचारधारा’ का  मालिक  ही ‘सकारात्मक  सोच’  रखता  है,
हर परिस्थिति में ‘प्रसन्न’ रहना, ‘मनोबल ऊंचा रखना’, उसकी नियति है ‘!
[9]
जरा सोचो (छोटी सी गुदगुदी)
मटर, पनीर ,टमाटर, सब  ला  दिए, फिर  भी ‘घूर’  रही  हो,
क्या ‘कचूमर’ बनाकर मेरा, ‘सब्जी में मिलाने’ का इरादा है’ !
[10]
जरा सोचो
यदि आपका ‘दिमाग’ और ‘जुबान’ दोनों ‘ बेहिसाब’ चलने लगे,
‘रिश्ते’ कमजोर  पड़ने  लगेंगे ‘ जीने  के  तरीके’ भूल  जाओगे’ !
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