Home ज़रा सोचो ‘स्वार्थ और कुरीतियों ” से बच कर चलो , आनंद ही आनंद है ” |

‘स्वार्थ और कुरीतियों ” से बच कर चलो , आनंद ही आनंद है ” |

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[1]

‘परोपकार’  ही  ‘सच्ची  पूजा’ और  परमात्मा  की ‘सच्ची  आराधना’  है,
‘ अध्यात्म ‘  को  जीवन  में  उतारना  सरीखा  है , ‘ न्यायोचित  है ‘ !

[2]

‘लोग  अभावों  से  जूझते  हुए  भी, ‘परिश्रम  से’ अपना  स्थान  बना  लेते  हैं,
‘ कुछ  लोग  सुख  सुविधा ”  होते  हुए  भी  ‘ कुछ  विशेष ‘  नहीं  कर  पाते ‘ !

[3]

‘लोग  कई  बार ‘अकर्मण्यता  के  कारण’ चलते  व्यवसाय  को  ‘हानि  पहुंचा  बैठते  हैं,
‘सब कुछ ‘मनचाहा  नहीं  मिलता, बिरले  ही ‘चांदी  का  चम्मच” लेकर  पैदा  होते  हैं’ !

[4]

‘मानसिक  एकाग्रता’ जीवन  का  सर्वोत्तम  लाभ,
‘अस्थिर  मन ‘ जीवन  की  एक  महान  हानि ,
‘विक्षिप्त  मन’ इंसान  को  सम्राट  से  भिक्षु  बना  देता  है,
‘ प्रश्न  उलझ  जाता  है, ‘ क्या  करें ? क्या  न  करें  आगे ?
[5]
‘हीरे- मोती’ जब  मजबूत  तिजोरी  में  रखते  हो,
‘अपने  सद्गुणों ‘ को  ऐसे  ही  संभाल  कर  रक्खो,
‘जब  गंदगी’ को  देखकर  नाक  मुंह  ढांप  लेटे  हो,
‘सभी दु र्गुणों’ को  देखकर  ऐसे  ही  बच  कर  चलो’ !
[6]
‘यह  भी  मेरा’ ‘वह  भी  मेरा’  कहते,                                                                                                                                                                                    ‘क्यों  बिता  रहा  है  जिंदगी  अपनी ?
‘अमीरी गरीबी’ जैसा  कुछ  नहीं  होता,
‘इंसानियत’  से जीते  तो  क्या  बिगड़  जाता ?
[7]
‘जो  कमजोर  होते  हुए  भी,                                                                                                                                                                                                  ‘निर्बलों  की  रक्षा’  में  रत  रहे,
‘कुरीतियों’  से  दूर  रहते  हों ,
‘सही  मनुष्य’ कहलाने  के  अधिकारी  हैं’
[8]
‘जो  स्वार्थी  है ,पर हानि  के  पर्याय  हैं,
‘पशु  समान  ही  समझो  उन्हें,
‘जो  दूसरों  की  ‘निंदा  और  वेदना’ में  तत्पर  रहें,
‘मनुष्यता  से  बाहर  हैं’ !
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