[1]
जरा सो चो
मन में ‘ईश्वर’ की ‘निकटता’ से , बिन मांगे ‘ सब मिल ‘ जाएगा !
‘बिना मांगे’ जब ‘गुलाब’- ‘खुशबू’ , ‘सूरज’-‘गर्मी’ प्रदान करता है,
[2]
जरा सोचो
‘ यादों ‘ के बीते ‘ मधुर पल ‘ ‘ निगाहों ‘ में नाच रहे हैं,
काश ! वह दिन पुनः ‘लौट’ आते,’एकाकीपन’ खत्म होता !
[3]
जरा सोचो
‘स्त्री’ चाहे ‘आगे’ चले या ‘पीछे’, ‘सम्मान’ करती है ,’अहंकारी’ नहीं होती,
‘ कंधे से कंधा ‘ मिलाकर जब चली , ‘ साथ ‘ निभाने से भी नहीं चूकी !
[4]
जरा सोचो
‘ मानव ‘- ‘ शांति ‘ पाने हेतु जीवन भर ‘ अशांत ‘ क्यों रहता है ?
अपनी ‘इच्छाओं’ को ‘विश्राम’ देकर ,’प्रकृति के सानिध्य’ में क्यों नहीं आते ?
[5]
जरा सोचो
‘मोहब्बत’ में कोई ‘जान’ भी मांगे तो ‘तैयार’ रहते हैं लोग,
‘ कोई ‘ किसी का ‘ गरूर ‘ ही मांग बैठे , क्या करें उनका ?
[6]
जरा सोचो
‘पत्नी’ मायके से रोज ‘पति’ को ‘फोन’ करती है,
पीछे से ‘बहक’ मत जाना, ‘टाइगर’ अभी ‘जिंदा’ है !
[7]
‘ स्वाभिमान ‘ बेच कर ‘ अरमान ‘ पूरे करना ‘ नाइंसाफी ‘ है,
‘स्वस्थ जीवन’ की ‘धरा’ ‘खिसक’ जाएगी, बहुत ‘पछताओगे’ !
‘गल्ती’ हमारी है या तुम्हारी, ‘रिश्तों’ का क्या ‘कसूर’ है इसमें ?
‘सुधार की गुंजाइश’ होनी चाहिए , बस इतनी सी ‘ख्वाहिश’ है !
एक दूसरे के लिए बनो , ‘दोनों’ एक जैसे ‘स्वभाव’ के नहीं,
जीवन में ‘धूम धड़ाका’ हमें ‘स्फूर्ति-दायक’ बनाए रखता है !