[1]
‘हमारा रिश्ता’ किससे कितना है ‘? ‘यह जानकर क्या होगा ?
‘ अपनत्व ‘ कितना है उसमें ‘ ? ‘ असली कमाई ‘ ये ही है ‘ !
[2]
‘अपनों को’ खो देने के बाद ही , ‘ कीमत ‘ का एहसास होता है,
‘स्नेह और सुलह’ से जीते तो, ‘खूबसूरती से ‘ जी ‘ लिए होते’ !
[3]
‘ हम ‘स्नेह की डोर’ से बंधे हैं, ‘वह दो पल भी ‘याद’ नहीं करते,
‘अपना ‘हरमो – करम’ अता कर दो, ‘ निहाल हो जाएंगे सारे ‘ !
[4]
‘हम स्वयं को ‘ धोखा ‘ देते हैं , ‘ अव्वल दर्जे के ‘ स्वार्थी ‘ भी बन जाते हैं,
‘पास में सब कुछ फिर भी ‘समस्या का हल’ और ‘प्रश्न का उत्तर’ नहीं मिलता’ !
[5]
‘भगवान ‘ एक यथार्थ है , ‘ कभी आप को ‘ पथभ्रष्ट ‘ नहीं होने देगा,
‘उसका स्मरण’ स्वयं ही ‘मार्ग के रोड़े’ हटाकर,’सही मंतव्य पर ले जाएगा’
[6]
‘ हमारी लालसायें खींचकर हमें , ‘ नर्क के गर्त ‘ में पहुंचा देती है,
‘प्रतिष्ठा’ दांव पर लग जाती है, ‘समाज’ के साथ ‘न्याय’ नहीं होता’ !
‘प्रतिष्ठा’ दांव पर लग जाती है, ‘समाज’ के साथ ‘न्याय’ नहीं होता’ !
[7]
‘प्रकाश के लिए प्रयत्न’ और ‘क्षमा दान’ करने के लिए, ‘कलेजा’ चाहिए,
‘क्रोध को प्रज्वलित’ मत होने दो, ‘सुमति’ को ‘कुमति’ मत बन बनाओ !
‘क्रोध को प्रज्वलित’ मत होने दो, ‘सुमति’ को ‘कुमति’ मत बन बनाओ !
[8]
‘वरिष्ठजन’ सुख शांति के ‘सागर’ हैं,
‘अनुभव’ का ‘आगाज’ हैं,
‘पूर्णता और तृप्ति’ की अनुभूति है,
‘स्नेह का सागर’ सरीखे हैं ‘ !
‘अनुभव’ का ‘आगाज’ हैं,
‘पूर्णता और तृप्ति’ की अनुभूति है,
‘स्नेह का सागर’ सरीखे हैं ‘ !
[9]
‘एहसास करें, ‘बुजुर्ग ‘ ‘ कदमों की धूल नहीं’
‘माथे की शान हैं’ ,
‘यह खुशियां’ बांटने का ‘ अद्भुत मेला’ हैं ,
‘ प्रतिभा ‘ की ‘ प्रतिमा ‘ हैं !
‘माथे की शान हैं’ ,
‘यह खुशियां’ बांटने का ‘ अद्भुत मेला’ हैं ,
‘ प्रतिभा ‘ की ‘ प्रतिमा ‘ हैं !
[10]
मेरी सोच
‘मुश्किलों और मुसीबतों’ को खत्म करने के लिए , जीवन के रास्ते ‘ ‘ सुकूनदायक ,
‘ संतोषजनक , व उपयोगी ही बनाए रखना चाहिए ! समयानुसार मानसिक बदलाव
बेहद जरूरी हैं !