Home कविताएं “सोच का अपना -अपना नज़रिया है ” कुछ सुविचार !

“सोच का अपना -अपना नज़रिया है ” कुछ सुविचार !

0 second read
0
0
962

[1]

‘हर  किसी  के  लिए  मन  में  दुआ  करने  के  द्वार  खुले  रक्खो ‘,
‘हो सकता है आपकी दुआ से किसी की किस्मत के द्वार खुल जाएँ ‘|

[2]

‘भरे पेट वाले ही नखरे पर नखरे 
दिखाते रहते हैं ‘,
‘भूखा पेट तो किवाड़ को भी पापड़ 
समझ कर चाट जाते हैं ‘|

[3]

‘तुम सब कुछ नहीं हो सकते और न ही सब कुछ कर सकते हो ‘,
फिर क्यों न एक पवित्र दिल का मालिक बन कर ‘जी लिया जाए ‘|

[4]

‘रो रो कर जिंदगी गुज़ार दी और थके नहीं अब तक ‘ ‘ तो मानव हो नहीं सकते ‘,
‘ज़िंदादिली से जीना एक बड़ा प्यारा अहसास है”इसका अहसास तो कर लो जरा |

[5]

‘साहस’ बटोर कर रक्खो और सदा ‘श्रम’
करते रहो’ ,
‘ये दोनों ‘सफलता’ या ‘विफलता’ के 
‘दृष्टिकोण हैं ‘|

[6]

‘हर किसी का आँख बंद करके विश्वास 
करना आत्महत्या समान है ‘,
‘लोग हर पल अपना रंग बदल लेते हैं,
शर्म नाम की चीज नहीं ‘|

[7]

‘एक देश के सैनिक की तरह 
सजग प्रहरी बन कर जीयो ‘,
‘अपना जीवन तो सुधरेगा साथ में 
देश भी सक्रिय होता जाएगा ‘|

[8]

‘दोस्ती – कभी स्त्री या पुरुष को 
परिभाषित नहीं करती ,’
‘ये वो रिस्ता है जो केवल बेलाग प्रेम को 
प्रदर्शित करता है ‘|

[9]

‘कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी’ 
‘सोचा न था’ ,
‘निष्ठुर थे , निष्ठुर ही रहे’ ,
‘गहराई नहीं नापी गयी हमसे ‘|

[10]

‘हालात तो आप बदल नहीं सकते ,
‘मन’ व ‘दृष्टि’ ही बदल डालो ,’
‘मन से’ दुर्विचार भगाओ और 
‘दृष्टि से ‘ ‘प्यार की भाषा बदल डालो ‘|

Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…