‘सांसे’ या तो ‘चलती’ है या ‘चली’ जाती है,
‘प्रथम’ नाम ‘जीवन’ है, ‘दूसरा ‘मृत शरीर’ है केवल’ !
‘यदि जीवन ‘रमजान’ की भांति जिए तो,’ईद’ कहेंगे सब,
‘अगर ‘चांडाल’ की फितरत है, ‘सब ‘भूल’ जाएंगे तुझे’ !
‘एक दिल’ जरूर है,
‘अनेकों दिलों में’ जगह बना जाऊंगा,
‘कितनी कोशिश करो ‘भूल’ जाने की,
‘यादों में समा जाऊंगा’
‘अनेकों दिलों में’ जगह बना जाऊंगा,
‘कितनी कोशिश करो ‘भूल’ जाने की,
‘यादों में समा जाऊंगा’
[4]
‘सदियों पहले ‘आदमी’ मरते थे,
‘आत्मा’ भटकती रहती थी,
‘आज लोगों की ‘आत्मा’ मर चुकी है,
‘खुद’ दर-दर भटक रहे हैं’ !
‘आत्मा’ भटकती रहती थी,
‘आज लोगों की ‘आत्मा’ मर चुकी है,
‘खुद’ दर-दर भटक रहे हैं’ !
[5]
‘जब ‘दिल’ में जगह बनी,’हम शायद ‘खासम खास’ है उनके,
‘उनकी ‘बेरुखी’ रूबरू हो गई, ‘सोच’ बदलने को ‘मजबूर’ थे’ !
‘उनकी ‘बेरुखी’ रूबरू हो गई, ‘सोच’ बदलने को ‘मजबूर’ थे’ !
[6]
‘देख लेना, ‘बिना हक’ छीन लोगे तो,
‘महाभारत’ का ही जन्म होगा,
‘जब ‘जनहित’ में ‘अपना हक’ छोड़ोगे,
‘रामायण लिखी जाएगी’ !
‘महाभारत’ का ही जन्म होगा,
‘जब ‘जनहित’ में ‘अपना हक’ छोड़ोगे,
‘रामायण लिखी जाएगी’ !
[7]
मिलने का जो भी ‘पल’ मिले, ‘आनंद से गुजरना चाहिए,
‘कौन कब बिछड़ जाए ? ‘भला कौन जानता है इसको’ ?
‘कौन कब बिछड़ जाए ? ‘भला कौन जानता है इसको’ ?
[8]
‘मुसीबतें’ बिना बताए, न जाने क्या क्या ‘सिखा’ देती है ?
‘शांत रहना, कर्मठ वनना, निडर बने रहना, उन्हीं की देन है’ !
‘शांत रहना, कर्मठ वनना, निडर बने रहना, उन्हीं की देन है’ !
[9]
‘समय’ सही ना हो तो,’अच्छा’ भी सबकी नजर को ‘बुरा’ लगता है,
‘सही समय’ हो तो ‘बुरा आदमी’ भी ‘ठाठ’ से जी लेता है यहां’ !
‘सही समय’ हो तो ‘बुरा आदमी’ भी ‘ठाठ’ से जी लेता है यहां’ !
[10]
‘ठीक है तुम इतने ‘अमीर’ नहीं,’जो ‘बीता समय’ खरीद सको,
‘इतने ‘ गरीब’ भी नहीं कि, ‘भविष्य’ को ‘सुंदर’ न बना सको’ !
‘इतने ‘ गरीब’ भी नहीं कि, ‘भविष्य’ को ‘सुंदर’ न बना सको’ !