पापा जी ! पंचायत इकठ्ठी हो गई , अब बँटवारा कर दो ।” कृपाशंकर जी के बड़े लड़के गिरीश ने
रूखे लहजे में कहा ।
“हाँ पापा जी ! कर दो बँटवारा अब इकठ्ठे नहीं रहा जाता ” छोटे लड़के कुनाल ने भी उसी लहजे में कहा ।
पंचायत बैठ चुकी थी , सब इकट्ठा थे ।
कृपाशंकर जी भी पहुँचे ।
“जब साथ में निर्वाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है , अब यह बताओ तुम किस बेटे
के साथ रहोगे ? ” सरपंच ने कृपाशंकर जी के कन्धे पर हाथ रख कर के पूछा ।
कृपाशंकर जी सोच में शायद सुननें की बजाय कुछ सोच रहे थे । सोचने लगे वो दिन जब इन्ही गिरीश
और कुनाल की किलकारियों के बगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे । वे बच्चे अब बहुत बड़े हो गये थे ।
अचानक गिरीश की बात पर ध्यान भंग हुआ ,
“अरे इसमें क्या पूछना , छ: महीने पापा जी मेरे साथ रहेंगे और छ: महीने छोटे के पास रहेंगे ।”
“चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया , अब करें जायदाद का बँटवारा ???” सरपंच बोला ।
कृपाशंकर जी जो काफी देर से सिर झुकाए सोच मे बैठे थे , एकदम उठके खड़े हो गये और क्रोध से
आंखें तरेर के बोले,
“अबे ओये सरपंच , कैसा फैसला हो गया ? अब मैं करूंगा फैसला , इन दोनों लड़कों को घर से बाहर
निकाल कर ।”
सुनो बे सरपंच , इनसे कहो चुपचाप निकल लें घर से , और जमीन जायदाद या सपंत्ति में छः महीने
बारी बारी से आकर मेरे पास रहें , और छः महीने कहीं और इंतजाम करें अपना । फिर यदि मूड बना
तो सोचूँगा ।
“जायदाद का मालिक मैं हूँ ये सब नहीं ।”
दोनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया , जैसे कोई नई बात हो गई हो ।
इसी नयी सोच और नयी पहल की जरूरत है ।