[1]
‘जरा सोचो
‘तुम’ खुश रहो , स्वस्थ रहो , तुम्हारा ‘ अस्तित्व ‘ बड़ा कीमती है ,
आपस में ‘मिलना जुलना’ जरूरी नहीं, दिल में ‘बने रहने’ की जरूरत है |
[2]
जरा सोचो
किसी की ‘ बातें ‘ सही हों या गलत , ‘ उत्तर ‘ देना चाहिए ,
‘शांत’ रह जाने से, ‘लोगों’ को ‘सीमा पार’ करते कई बार देखा है !
[3]
जरा सोचो
जब कोई ‘समस्या’ आती है, ‘समाधान’ भी साथ लाती है,
‘झमेलों’ में पड़े रहने के कारण, हम उनका ‘हल’ ढूंढते ही नहीं !
[4]
जरा सोचो
अपनी ‘कमियों’ को ‘संज्ञान’ में लाओ, ‘दोष- रहित’ होने का प्रयास करो,
यूं ही ‘डगमग’ होते रहे तो ‘पश्चाताप’ के अलावा कुछ नहीं ‘पा’ आओगे !
[5]
जरा सोचो
बंटवारे में मां ने पूछा ‘ मैं किसके हिस्से में हूं ‘ ?
शब्द सुनते ही मैं चक्कर खा कर गिर पड़ा ,
इस त्रासदी का एहसास जब जागा, बहुत देर हो गई थी,
सभी बच्चे अपनी डफली अपना राग में, पूरी तरह से मगन थे |
[6]
जरा सोचो
‘किस्मत’ पर ‘ताला’ नहीं होता, फिर भी ‘कर्म की चाबी’ घुमाए जा ,
“आज नहीं तो कल’ ‘वक्त’ बदलेगा, अटारी पर ‘कोयल’ भी गाएगी !
‘किस्मत’ पर ‘ताला’ नहीं होता, फिर भी ‘कर्म की चाबी’ घुमाए जा ,
“आज नहीं तो कल’ ‘वक्त’ बदलेगा, अटारी पर ‘कोयल’ भी गाएगी !
[7]
जरा सोचो
‘ जिज्ञासा’ और ‘जान’ की भूख, तुम्हें ‘परिभाषित’ करा देगी,
तुम ‘ सामान्य प्राणी ‘ नहीं ‘ मानवता ‘ के ‘ प्रतिबिंब ‘ हो !
‘ जिज्ञासा’ और ‘जान’ की भूख, तुम्हें ‘परिभाषित’ करा देगी,
तुम ‘ सामान्य प्राणी ‘ नहीं ‘ मानवता ‘ के ‘ प्रतिबिंब ‘ हो !
[8]
जरा सोचो
मानव ! ‘जरूरतों’ में ‘उलझा’ पड़ा है,’सकून’ पाने की कोशिश नहीं,
‘खाली हाथ’ आया था ‘खाली हाथ’ जाएगा,’ हाय तोबा’ किसलिए ?
मानव ! ‘जरूरतों’ में ‘उलझा’ पड़ा है,’सकून’ पाने की कोशिश नहीं,
‘खाली हाथ’ आया था ‘खाली हाथ’ जाएगा,’ हाय तोबा’ किसलिए ?
[9]
जरा सोचो
‘हम’- ‘ भीड़ ‘ में तो भीड़ ‘ हैं , जिंदगी ‘ नहीं ,
‘जिंदगी’ की रचना करनी है, तो ‘भीड़’ से निकलो !
‘हम’- ‘ भीड़ ‘ में तो भीड़ ‘ हैं , जिंदगी ‘ नहीं ,
‘जिंदगी’ की रचना करनी है, तो ‘भीड़’ से निकलो !
[10]
जरा सोचो
‘ बेकसूर’ जब ‘तकलीफ’ मिलती है ,’दर्द’ बहुत होता है,
‘ देने वाले’ समझते हैं, ‘हमने जो किया अच्छा किया’ !
‘ बेकसूर’ जब ‘तकलीफ’ मिलती है ,’दर्द’ बहुत होता है,
‘ देने वाले’ समझते हैं, ‘हमने जो किया अच्छा किया’ !