[1]
‘सफलता के समुद्र’ से मिलना चाहो तो,’ बाधाओं से टकराना सीखो,
‘मनोभाव ऐसे बनें, ‘कठिनाइयों’ को ही ‘सफलता का सोपान’ समझें ‘ !
[2]
‘यारब ! हमें वही मिलता है जो ,’ हमने अपनी हांडी में पकाया है,
‘जब हांडी में ‘दलिया’ पकाया है, ‘हलवा’ बाहर कैसे आएगा ? ‘तू यह बता’?
[3]
‘अपनी रुचि अनुसार’ किसी को जीवन जीने के लिए, ‘मजबूर मत कीजिए,
‘उसे ‘उसकी मौलिकता’ से ‘खिलने’ ‘विकसित होने’ का अवसर मिलना चाहिए’
[4]
‘चुनौतियों से बिना डरे, ‘रचनात्मक हल’ ढूंढना सर्वश्रेष्ठ विधा है,
‘नजरिया बदल कर, मस्तिष्क का प्रयोग, ‘हमें ‘मंजिल’ से मिलवा देगा’ ।
[5]
‘अनीति , अधर्म और अन्याय , का आप ‘विरोध’ नहीं करते,
‘आप पूर्णतया ‘अधर्मी’ हैं ,’इंसानियत’ जैसी कोई चीज नहीं’ !
[6]
‘शरीर से जितना ‘काम’ लोगे, उतना ही ‘ स्वस्थ और चुस्त ‘ रहोगे,
‘शरीर को कितना ‘आराम’ दोगे, उतना ही ‘निकम्मा और बीमार’ होता जाएगा’ !
[7]
‘सिर्फ मौका मिलते ही उसे, भुनाने का प्रयास, ‘सार्थक प्रयास’ है’ !
‘आत्मविश्वास’ छळकेगा, ‘सफल जीवन’ जी जाओगे’ !