[1]
जरा सोचो
‘अच्छे सपने’ को ‘हकीकत’ में ‘तब्दील’ कर डाले,’ काबिलियत’ कहते हैं उसे,
देश के नौजवानों ! इस गजब के ‘ जज्बे ‘ को , ‘ टूटने ‘ मत देना !
[2]
जरा सोचो
‘बात’ चाहे ‘मीठी’ हो या ‘कड़वी’ ‘हंसकर’ ही बोल दो,
जो ‘ बात ‘ हजम ना हो , उसे कल पर ही ‘ टाल ‘ दो !
[3]
जरा सोचो
‘इंसानियत’ के साथ ‘मौसम’ ‘गुस्ताखियां’ कर रहा है आजकल,
‘संयमी’ और ‘साहसी’ बन कर, ‘मुकाबला’ करने की कोशिश तो कर. !
[4]
जरा सोचो
जल्दी ‘उतार चढ़ाव’ को संजोये ‘स्नेह’, ‘स्नेह’ की श्रेणी नहीं होती,
ह्रदय का ‘अघट प्रेम’ ही ‘ मानव को मानव ‘ बनाए रखता है !
[5]
जरा सोचो
हर बात की ‘शिकायत’ निरर्थक है, ‘दोषारोपण’ से भला नहीं होगा,
‘न्याय पर उंगली’ उठाने से पहले, ‘खुद पर उंगली’ उठा कर देख लो !
[6]
जरा सोचो
जब ‘ असफलता ‘ और ‘ निराशा ‘ घेरे हो , ‘ मन ‘ अस्थिर हो ,
खुद पर ‘विश्वास’ जगाओ, ‘अनुकूल अवस्था’ निर्मित करो,’ जी’ जाओगे !
[7]
जरा सोचो
‘आपसदारी’ ‘बचानी और निभानी’ है या ‘दो- फाड’ का इरादा है,
‘सर्जन’ बनने में 25 वर्ष लगते हैं , ‘विसर्जन ‘ ‘दो पलों’ का खेल है !
[8]
जरा सोचो
मैं कभी ‘कुढता’ नहीं, दूसरों की ‘बदजुबानी ‘ हजम कर लेता हूं,
‘ सर्वोत्तम सोच ‘ का मालिक हूं , ‘ स्नेहाकांक्षी ‘ प्राणी हूं !
[9]
जरा सोचो
काम , क्रोध , वश में किया , ‘ दीन-हीन ‘ की ‘ सेवा ‘,
लोग ‘सज्जन’ कहने लगे, ‘चाहे- और कौन सी ‘मेवा’ ?
[10]
जरा सोचो
क्षमाशील , सच्चा , द्वेषरहित , धैर्यपूर्ण – ‘प्राणी’ धरती का ‘प्रकाश’ है,
ऐसा गौरव एक ‘किवदंती’ है, जिससे संसार का अंधकार मिटता है !