एक बार रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक सहायक की ज़रूरत थी , उन्होने अपने पुराने शिष्यों को बताया | उन्होने कई युवायों को भेजा | आचार्य ने परीक्षा ले कर दो युवकों को चुना और दोनों को एक-एक रसायन तैयार करके लाने का आदेश दे दिया
पहला युवक दो दिन बाद रसायन तैयार कर के ले आया | आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और युवक से पूछा, “तुमने बहुत जल्दी रसायन तैयार कर लिया , कुछ परेशानी तो नहीं हुयी ‘ ? युवक ने उत्तर दिया ,’सर , परेशानी तो आई | मेरे माता-पिता बीमार थे फिर भी समय निकाल कर आपके आदेश का महत्व समझ कर एकाग्रता से रसायन तैयार कर लिया “|”
कुछ देर बाद दुसरा युवक बिना रसायन लिए खाली हाथ आया और आचार्य जी से कहा-‘ आचार्य जी क्षमा करें , मैं रसायन तैयार नहीं कर पाया क्योंकि यहाँ से जाते हुए मुझे रास्ते में एक बुजुर्ग व्यक्ति मिल गया जो पेट –पीड़ा से कराह रहा था | मुझसे उसकी पीड़ा देखी नहीं गयी | मैं उसे अपने घर ले गया और उसके इलाज़ में लग गया | अब वो पूरी तरह स्वस्थ है , अब आप यदि आज्ञा दें तो मैं रसायन तैयार करके शीघ्रता से ले आऊँ “|”
आचार्य नागार्जुन ने मुस्करा कर कहा –““वत्स , तुम्हें अब रसायन बनाने की ज़रूरत नहीं है | कल से तुम मेरे साथ रहकर काम कर सकते हो |” फिर पहले युवक से बोले, ‘ वत्स तुम्हें अपने अंदर और सुधार करने की ज़रूरत है | तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया, इससे मैं अति प्रसन्न हूँ “” |
तात्पर्य यह है – “””’ सच्चा चिकित्सक वह है जिसके अंदर मानवीयता भरी हो | उसके भीतर यह विवेक होना आवश्यक है कि पहले क्या करें “”’ ?
‘अगर किसी को तत्काल सेवा और उपचार चाहिए तो चिकित्सक को दूसरे सभी आवश्यक कार्य छोड़ कर उसकी सेवा में लग जाना चाहिए “’
ओम शांति ओम