[1]
‘ जब तक सांसें चलती हैँ , ‘ दुनियां साथ चलती है ,
‘सांसे गयी तो सब कुछ ख़तम, भूल जाते हैँ सभी !
[2]
‘आत्म-सम्मान खो कर झुका तो खुद को खो दिया समझो,
‘ हाँ सलीके से झुकना हमारी नम्रता के हस्ताक्षर हैँ !
[3]
‘हर किसी को खुश करने का बहुत शौक था मुझको,
‘जब मुसीबतों ने मुझे घेरा,’मैं बिल्कुल अकेला था ‘ !
[4]
‘ सिकंदर ने दुनियां जीती थी मगर खाली हाथ ही जाना पड़ा,
‘क्या तुमने भाँग खा ली है, ‘सबकुछ समेटने में लगा है आजतक ‘
[5]
‘कुसंस्कारों और कुविचारों के समापन में ‘धैर्य’ काम आता है ‘,
‘जल्दबाज़ी सदा घातक है , ‘ कोई भी संभल नहीं पाता ‘ !
[6]
‘जब हम ‘क्रोध और नफरत ‘ का जहर दूसरे पर उतारते हैँ,
‘खुद ही भस्म हो जाते हैँ,’कभी किसी का कुछ नहीं बिगड़ता ‘ !
[7]
‘मेरी सोच की सभ्यता कभी झुकने नहीं देती ,
‘हर दिल अज़ीज़ रहता हूं ,’ यारों का यार हूं. !
[8]
‘धर्म को धंधे में क्या मिलाया , चारों बांछे खिल गयी,
‘गाय का दूध पचास और उसका मूत्र नब्बे में बिक गया.