बात तब की है जब भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया था । तब चारों दिशाओं के ऋषि श्रीराम का अभिनन्दन करने अयोध्या आए ।
उस अवसर पर प्रश्न उठा क्या रावण सबसे शक्तिशाली था ?
तो महर्षि अगस्त्य ने कहा नहीं , और रावण के सहस्रबाहु अर्जुन और वानरराज बाली से करारी हार की कहानी सुनाई ।
फिर महर्षि अगस्त्य जी ने कहा इन सबमें सबसे शक्तिशाली था इंद्रजीत , और इंद्रजीत की कथा सुनाई ।
रावण , मेघनाद , बाली आदि दुष्टों की कथाएं सुन सुन कर श्रीराम को कोफ्त सी उठी ।
और जब अगस्त्य जी ने कहा कि अत्यधिक बलशाली बाली को भी आपने दग्ध कर डाला , तो श्रीराम भावुक से हो गए , और अपने परमप्रिय हनुमान जी का अतुलित शौर्य याद करके रोमांचित हो उठे ।
श्रीराम को हनुमान जी की जगह अन्य लोगों के शौर्य का यशोगान सुन एक टीस सी उठी ।
करुणानिधान भगवान रघुवर अगस्त्य जी से बोले ,
“महर्षे! निस्संदेह, बाली और रावण का बल अतुलनीय था , पर मेरा ऐसा मानना है कि इन दोनों का बल भी हनुमान जी के बल की बराबरी नहीं कर सकता । शूरता, दक्षता , बल , धैर्य , बुद्धिमत्ता , नीति , पराक्रम और प्रभाव , इन सद्गुणों ने हनुमान जी के भीतर घर कर रखा है ।”
“समुद्र को देखते ही वानर सेना घबरा उठी थी , पर ये महाबाहु हनुमानजी सेना को धैर्य बंधा कर एक ही छलांग में सौ योजन समुद्र लांघ गए थे । फिर लंकिनी को परास्त कर ये रावण के अन्तःपुर में घुस गये । अशोक वाटिका में जानकी जी से मिले और उन्हें भी धैर्य बंधाया । वहाँ अशोक वन में इन्होंने अकेले ही रावण के सेनापतियों , मन्त्रिकुमारों , किंकरों और रावण पुत्र अक्षकुमार मार गिराया ।”
“फिर ये हनुमान जी मेघनाद के नागपाश से बंधकर स्वयं ही मुक्त हो गए थे । फिर रावण से भी इन्होंने वार्तालाप किया , पर जैसे प्रलयकाल की आग ने यह सारी पृथ्वी जलाई थी , वैसे ही इन्होंने लंकापुरी जला कर भस्म कर दिया था ।”
“युद्ध में इन श्री हनुमान जी के जो पराक्रम देखे गए हैं , ऐसे वीरतापूर्ण कर्म न तो काल ने किए , न इन्द्र ने , न वरुण ने , यहाँ तक कि भगवान विष्णु के भी नहीं सुने जाते ।”
“हे मुनिराज ! सच कहूँ , तो मैंने तो इन्हीं श्री हनुमान जी के बाहुबल से ही विभीषण के लिए लंका , शत्रुओं पर विजय , अयोध्या का राज्य , सीता जी , लक्ष्मण व मित्रों बन्धुओं को प्राप्त किया है ।
यदि मुझे वानरराज सुग्रीव के सखा ये श्री हनुमान जी न मिलते तो सीता जी का पता लगाने में कौन समर्थ हो सकता था???
हे भगवन ! मुझे तो आप इन परम प्रतापी श्री हनुमान जी की कथा ही विस्तार से सुनाइये…”
श्री रामचन्द्र जी के ये प्रेम भरे वचन सुन कर , हनुमान जी की तरफ देखते हुए अगस्त्यजी बोले , “श्रीराम ! आपकी सब बातें सच हैं । बल , पराक्रम , बुद्धि और गति में इनकी तुलना कौन कर सकता है ?”
अगस्त्यजी से पूरी हनुमान जी को जीवन कथा सुनने के बाद श्री राम जी बड़े प्रसन्न और विस्मित हुए ।
– श्री मद्वाल्मीकीय रामायण , उत्तरकाण्ड , 35वाँ सर्ग
भगवान का इतना प्रेम पाने वाले भक्तराज एकमात्र प्रभु हनुमान जी ही हुए हैं । जहाँ भक्त भगवान की कथा सुनने को नहीं बल्कि भगवान खुद ही भक्त की कथा सुनने को लालायित हैं ।
जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा को तीनों लोक अर्पित कर दिए थे , भगवान श्रीराम ने तो अपनी प्रभुता ही हनुमान जी को समर्पित कर दी और अपने समस्त कार्यों का श्रेय एकमात्र उन पर डाल दिया । श्रीराम ने हनुमान जी को अपने हृदय में स्थान दिया , और स्वयं हनुमानजी के हृदय में विराजित हो गए ।
भगवान के काज करने को आतुर , ऐसे श्री हनुमान जी हमें भी रामकाज में लगाएं । बजरंगबली हनुमान जी ऊर्जा के परम स्रोत हैं ।
पवनतनय संकट हरण मंगलमूर्ति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ । सब परिहर भजो भजय जेही संत ==