Home ज़रा सोचो “शिष्टाचारी बनें और कुछ जीवनोपयोगी बातों का ध्यान रक्खें ‘|

“शिष्टाचारी बनें और कुछ जीवनोपयोगी बातों का ध्यान रक्खें ‘|

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आदरणीय   मित्रों   !

यदि   हम   निम्न   बातों   का  ध्यान   रक्खें   तो  निश्चित  ही  शिष्टाचारी  जीवन   जी   सकते  हैं    !-

1  अपने  से   बड़ों   के   आने   पर  खड़े   हो  कर  ही   अभिवादन  करें  |

2  ‘अतिथि और सम्माननीय  व्यक्ति ‘  के  आने  पर  उन्हें  उचित   स्थान  दे  कर  सम्मान  करें  |

3   सभी   के  साथ  शुद्ध  उचित  बात  करना  सर्वोत्तम  है   |

4   किसी  के  साथ  कपट , छल  और  बेईमानी  से   उत्साहित  व्यवहार   कदाचित  उचित   नहीं  |

5   अंधे  ,  बहरे ,  लूले-लंगड़े   लोगों   का  उपहास  न  करें  |

6   कभी   गाली- गलोच   और  गंदी   व  असभ्य  भाषा  का   प्रयोग  न  करें  |

7   नाखूनों   को  कभी  अपने   दांतों   से   न  काटें   |

8   वार्तालाप  में   थोड़ा   बोलें  , हितकारी   बोलें   और   शिष्ट   बोलें  |

9   ‘अंधे  को  अंधा  कहना ‘  और  ‘काणे   को  काणा  कहना ‘ कभी   शिष्टता  की   श्रेणी   में   नहीं    आता   |

10  ‘गुरुजन   खड़े   हों  तो   स्वम  का  बैठे   रहना  या  लेटे   रहना  शिष्टाचार  के   विपरीत   है  |

11  ‘पुस्तक  और   भोजन ‘ को  ‘ पैर   से   छूना  व   लांघना ‘ कभी   समुचित  कदम   नहीं  |

12 ‘वस्त्र   पहनती   स्त्री ‘, ‘भोजन  करती  स्त्री ‘, ‘काजल  व  बिंदी  लगाती  स्त्री ‘ तथा   ‘नग्न  स्त्री ‘  को   देखना  शिष्टाचार   का   अपमान   है  |

13 ‘पाखंडी , कुकर्मी  और  धूर्त ‘ का  सत्कार   मत   करो  |

14  मार्ग   में   चलते   समय  खाते  हुए   कभी   मत   चलो  |

15   मार्ग  में  कहीं   भी   ‘थूकना ‘, ‘ कूड़ा  या   कागज़  सड़क   पर  फ़ैकना ‘ शिष्टाचार   नहीं   होता  |

16  ‘अपने   घर  को   सही   सज़ा  कर  न   रखना ‘  भी  शिष्टाचार  की  श्रेणी   में  नहीं  आता  |

17  दूसरे  के  दुर्गनों  को   छोड़ते   जाना  और  ‘ उसके  गुणों   को   ग्रहण ‘ करते   रहना  शिष्टाचार    का  शिष्ट   आचरण   है  |

18  यदि   बुद्धिमानी   से  कार्य   किया  जाए  तो  ‘मूर्खों   से  भी  शिष्टाचार’   सीखा  जा  सकता  है  |

जय    भारत   |    

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