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शिक्षा-प्रद —- महाभारत का एक द्रष्टरांत

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एक   दिन  दुर्योधन  के  व्यंग  से  आहत  होकर , भीष्म  पितामह  घोषणा  करते हैं :-

“मैं पांडवों  का  बध  कर  दूंगा | “

उनकी  घोषणा  का  पता  चलते  ही  पांडवों  के  शिविर  में  बेचैनी  बढ   गई |  भीष्म   की  छमाताओं   के  बारे  में  सभी  को  पता  था  इसीलिए  सभी  किसी  अनिष्ट  की  आशंका  से  परेशान  हो  उठे |

भगवान  श्री  कृष्ण  सब  कुछ  अच्छी  तरह  समझते  थे | उन्होने  द्रोपदी  से  कहा ,” तुम  तुरंत  मेरे  साथ  चलो  “ थोड़ी  ही  देर  में  श्री  कृष्ण  और  द्रोपदी  सीधे  भीष्म  पितामह  के  शिविर  में  पहुँच  गए | बाहर  खड़े  हो  कर  श्री  कृष्ण  ने  द्रोपदी   से  कहा , “ अंदर  जा कर  पितामह  को  दंडवत  प्रणाम  करो “ |

द्रोपदी  ने  अंदर  जा  कर  पितामह  को  प्रणाम  किया  तो  उन्होने  कहा , “ अखण्ड सौभाग्यवती  भव “ | आशीर्वाद  दे  कर  उन्होने  द्रोपदी  से  पूछा , “ वत्स , तुम  इतनी  रात  में  अकेली  कैसे  आई  हो , क्या  तुमको  श्री  कृष्ण  यहाँ   ले  कर  आए  हैं “ ? तब  द्रोपदी  ने  कहा ,” हाँ  और  वो  आपके  कक्क्ष के  बाहर  खड़े  हैं |” तब  श्री  भीष्म  जी  भी  कक्क्ष  से  बाहर  आ  गए  और  दोनों  ने  एक-दूसरे  को  प्रणाम  किया |

भीष्म  ने  कहा ,” मेरे  एक  वचन  को  मेरे  द्वारा  ही  दूसरे  वचन  से  काट  देने  का  काम   श्री  कृष्ण  ही  कर  सकते  हैं “| लौटते  समय श्री  कृष्ण  ने  द्रोपदी  से  कहा ,” तुम्हारे  एक  बार  जा कर  पितामह  को  प्रणाम  करने  से  तुम्हारे  पतियों  को  जीवन  दान  मिल  गया  है “ | “ अगर  तुम  प्रतिदिन  भीष्म , द्रोणाचार्य , आदि  को  प्रणाम  करती  होती  और  दुर्योधन , दुःशान  आदि  की   पत्नियाँ  भी  पांडवों  को  प्रणाम  करती  होती  तो  इस  महा भारत  जैसे  महायुद्ध  की  नौबत  ही  नहीं  आती |”

भावार्थ :-

वर्तमान  में  हमारे  घरों  में  जो  इतनी  समस्याएँ  हैं  उनके  मूल  में  यह  कारण  है  कि  जाने  अनजाने  अक्सर  हमसे  घर  के  बड़ों  की   उपेक्षा  हो  जाती  है | यदि  सभी  अनुज  अपने  बड़ों  को  प्रणाम  करके  प्रतिदिन  आशीर्वाद  लें  तो  शायद  किसी  घर  में  क्लेश  ही न  हो |

“बड़ों  के  दिये  आशीर्वाद  ऐसे  कवच  का  काम  करते  हैं  जिसको  कोई  अस्त्र-शस्त्र    नहीं  भेद  सकते  “

“  महा भारत  इस  प्रकार  की  अनेक  घटनाओं  से  ओतप्रोत  है  जो  जीवन  की  अनेक  विसंगतियों  पर  विराम  लगाती  है तथा जीवन  को  उत्तम विधाओं  से  जोड़ती  है “ |

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