Home ज़रा सोचो ” व्यवहार, सुप्रयास ,हमारे कर्म , स्नेह हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं “

” व्यवहार, सुप्रयास ,हमारे कर्म , स्नेह हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं “

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आदरणीय   मित्रों –
यदि   हम  ” ” अपने  व्यवहार ”  में  ” छोटी- छोटी  बातों ”  पर  ध्यान  दें  तो, हम  अपनी  “कई  बुराइयों ”  को  “छोड़”  सकते  हैं | हम  अपनी  ‘इसी  आदत  के  कारण”  कई  बार  ” अपनों  को ”  अनजाने  में ” ” चोट  पहुंचाते ”  रहते  हैं | ज़रा  सोचो ,  कहीं  हम  भी  ‘ऐसा  ही  कर  रहे ”  हों  ?  यदि  ” हाँ ”   है ,  तो  ” तुरन्त  सुधार  की  आदत  ”  डाल  कर  देखिये  |
[2]
‘जितना  ‘सुप्रयास’  उतना ‘प्रसाद’, जितना  ‘कुप्रयास’ इतनी ‘उदासी’,
‘हाथ  पैर  नहीं  चलाये’  तो  देख  लेना , ‘ भुखमरी ‘ ही  हाथ  आएगी’ !
[3]
‘हमारे  कर्म’  ही  ‘भाग्य  का  निर्माण’ करते  आए  हैं,
‘क्यों  ना  ऐसे  कर्म  करें, याद  आते  रहे  सबको’ ?
[4]
‘हर  किसी  से  ‘स्नेह’  दर्शाया  नहीं  जाता,
‘गले  लगाने  से  पहले  हजारों  सवाल  उठते  हैं,
‘नाव  किनारे  लगाना  भी  बेहद  जरूरी  है,
‘चतुर  मांझी  ही  कभी  भंवरों  में  नहीं  फसता,
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‘लड़की’  जिस  घर  में  जन्म  लेती  है,’जगह  नहीं  होती  उसके  लिए,
‘ जहां  वो  रहती  है  वहां  उसे , ‘ समझने  की  कोशिश  नहीं  होती ‘ !
[6]
‘रिश्ते’  कभी  ‘खून’  से  नहीं, ‘विश्वास’  से ‘जगमग’  होते  हैं  सदा,
‘अपने  या  पराएपन’ की  झलक, ‘विश्वास’  की  ‘परछाई’  समझ’ !
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‘हमारा  रिश्ता’ किस  से  कितना  है,’यह  जानकर  क्या  होगा ?
‘ अपनत्व ‘  कितना  है उसमें , ‘असली  कमाई’  ये  ही  है ‘ !
[8]
‘सूर्य  की  किरणों’  को  नमस्कार  करके, अपना  जीवन  आरंभ  करिए,
‘सूर्य का ताप’ प्राकृतिक  साधनों  को  पल्लवित  कर, ‘उत्पादक’ बनाता  है,
‘प्रकृति ‘  मनुष्य  की  जरूरतों  को  पूरा  करने  में  पूरी  तरह  सक्षम  है ,
‘समुन्नत  साधनों’  का  प्रयोग  करके , उसका  ‘दोहन’  जीवंत  बना  देगा’. !
[9]
‘सूर्य  भगवान’  छोटे  दिखते  हैं ,परंतु  ‘त्रिभुवन  का  अंधकार’ मिटा  देते  हैं,
‘अगस्त मुनि’ छोटे  दिखते थे परंतु  अंजलि  में सागर  भर  कर  पी  गए  थे,
‘मंत्र’ छोटा  सा  होता  है  परंतु संसार  के सभी  देवता  उसके अधीन क्यों  हैं?
‘ राम’ ने ‘मानव जन्म’ लेकर, ताड़का  मारीच, सुबाहु, को  मार  डाला  था,
‘ मन  की शंका’ दूर करो , ‘विश्वास जगाओ’, ‘असंभव ‘ को ‘संभव’ बनाओ,
‘मन  के  हारे-हार  है ,’मन  के जीते-जीत’, इसकी ‘गांठ’ बांध  लो  मन  में’ !
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