5 जून को दुनियाँ भर में ‘विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है |पर्यावरण और धरती के बढ़ते तापमान के पीछे विश्व के विकसित देश भी पीछे नहीं है | भावी पीढ़ी के लिए एक खूबसूरत और शुद्ध धरती छोडना हम सब की ज़िम्मेदारी है | भारत कार्बन उत्सर्जन के कड़े मानिकों की स्वीकार करने के लिए वचन बद्ध है | भारत विश्व की 4 % कार्बन उत्सर्जेन करने के लिये जिम्मेदार है | विकास शील और विकसित देशों के बीच प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जेन में बड़ा अंतर है | भारत भी जलवायु परिवर्तन के खतरों से प्रभावित होने वाले देशों में से एक है |
इस संकट से बचने लिए के लिए कृषि , जल -संसाधन , तटीय छेत्रों , स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन मोर्चे पर भारी निवेश की जरूरत है | यही कारण है सरकार द्वारा स्वच्छ ऊर्जा , सौर ऊर्जा को प्राथमिकता के आधार पर प्रोत्साहन दिया जा रहा है |
पर्यावरण के मामले में हम बहुत पीछे हैं जिनके मुख्य कारण ये हैं :-
1 देश मे हमारे पास जरूरत के अनुसार शुद्ध पेय जल उपलब्ध नहीं है |
2 सांस लेने के लिए वायुमण्डल में शुद्ध हवा तक नहीं है |
3 जंगल दिन-प्रेतिदिन कटते जा रहे हैं | इनके स्थान पर कंक्रीट की विशाल इमारतें खड़ी हो चुकी हैं |
4 जल से भरे लबालब भरे ताल , पोखर , झीलें और अन्य जल-श्रोत अधिकतर सूख चुके हैं |
5 वन्य जीवों के आशियाने छिन चुके हैं और वो शहरों में घुस कर उत्पात मचा रहे हैं |
6 उद्योग – धुआँ और जहरीले रसायन उगल रहे हैं और प्राण वायु को प्रदूषित करते जा रहे हैं |
7 गाँव से शहर की ओर पलायन के कारण शहरों पर बोझ बढ़ता जा रहा है जिससे शहरों मे जीवन नारकीय सा हो चला है |
8 दिन-‘प्रतिदिन प्रथ्वी से हरियाली गायब हो चली है | धरती का तापमान निरंतर बढ़ रहा है | और तो और बड़े शहरों पर ” ओज़ोन प्रदूषण ” का खतरा मंडराने लगा है जो लोगों की सेहत के लिए बहुत खतरनाक है |
9 हम कृषि अवशेषों को जलाकर पर्यावरण को प्रदूषित करने का काम भी कर रहे हैं |
10 सिकुड़ते खेत -खलियान और बढ़ते कंक्रीट के जंगल से भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है | हमारी ऋतुए बदल रही है , तापमान उलट-पुलट होता जा रहा है |
11 मानसून में बदलाव के कारण कभी बाढ़ , कभी सूखा , कभी भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं का सामना करना पड रहा है | इस विखंडन के लिए आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी |
पर्यावरण की रक्षा के लिए स्वच्छ हवा , शुद्ध जलवायु और ध्वनि-प्रदूषण की रोकथाम करनी जरूरी है | भू-संरक्षण के लिए हमें ‘जैविक खेती’ को अपनाना होगा , नदियों को स्वच्छ बनाना होगा , वर्षा के जल का संचय करने से साधन उपलब्ध कराने होंगे | भूमिगत जल का दोहन युद्ध -स्तर पर रोकना होगा | हर संभव पेड़ों की कटाई को तुरंत प्रभावी रूप में रोकना होगा | रोजाना अनगिनत पेड़ ‘पौधे लगाने होंगे |
यह सारे काम अकेली सरकार नहीं कर सकती | हमें भी प्रकृति से जुड़ना होगा |
जिस तरह माता के रक्त-मांस से बच्चे का शरीर बनता है उसी तरह मात्र-भूमि से उत्पन्न होने वाले अनाज , पानी , हवा ,और वनस्पतियों से उन देश वासियों का पालन पोषण होता है तथा पर्यावरण विज्ञान की राष्ट्रिय चेतना भी विकसित होती है |
वर्तमान पर्यावरण संकट की चेतावनियों को देखते हुए भारतीय संस्कृति के पर्यावरण संबंधी चिंतन को हमें पुनः ताज़ा करना होगा |
जहां हरियाली होगी वहीं खुशहाली होगी | पर्यावरण बचेगा तो प्राण बचेंगे | प्रकृति का शोषण आज के परिपेक्ष में किसी भी क्राइम से कम नहीं | प्रकृति को हमारी संस्कृति एवम संस्कारों में शामिल किया जाना चाहिए |
आइए – ब्रह्मांड की पर्यावरण शांति के लिए यज्ञ करें जो व्रक्ष लगाकर भी कर सकते हैं और उनकी रक्षा करके भी कर सकते हैं |
आइये आगे बढ़ें , जल , जंगल और जमीन की रक्षा का प्राण लें |