[1]
आप ‘आलोचक’ हैं या ‘आलोचना’ के ‘शिकार’ , तुम्हारी ‘ व्यवस्था ‘ है ,
दोनों ‘विध्वंशकारी’ परिवेश हैं , ‘कल्याणकारी’ हो कर जीना ही सदा उतम |
[2]
‘गल्ती पर गल्ती’ देख कर भी , ‘माँ-बाप’ स्नेह से गले लगाते हैं ,
चाहे हजारों से मिलते रहो , ‘स्नेह’ की ‘बौछार’ ढूंढते रह जाओगे |
[3]
मेरी सोच
” जब जीवम सुचारु रूप से चलता है तो हम समझते हैं ‘ मैं सही चालक हूँ ‘
परंतु जब व्यवधानों से त्रस्त रहते हैं तब ऐसा नहीं | हम भूल जाते हैं चलाने
वाला कोई और है , हम उसके एक जरिया मात्र ही हैं ” |
[4]
‘प्यार’ की शुरुआत आपकी है , अब हम अपना ‘करतब’ दिखाएंगे ,
हम ‘दिलों’ में समाने को तैयार हैं , जरा ‘संभल’ जाओ |
[5]
पक्की उम्र का ‘इश्क’ ‘इश्क’ नहीं होता , ‘स्नेह’ होता है सबका ,
‘इश्क’ तो किशोर उम्र की ‘बाजीगरी’ है , ‘स्नेह’ की बारिस किए रखना |
[6]
इंसान की बोली ‘भाषा’ अच्छा/ बुरा सब बयान कर देती है ,
इसका प्रयोग ‘सुकर्मी, सुधर्मी, परोपकारी’ होना सुनिश्चित करो |
[7]
हमारी ‘वाणी’ और ‘विचारों’ की ‘गुणवत्ता’ उत्तम होनी चाहिए ,
‘द्विभाषी’- ‘दुराचार’ की श्रेणी है , ‘संस्कारों’ की बली है , ‘संकटी’ है |
[8]
बुरे समय में ‘दिलासा’ अजनबी को भी ‘अपना’ बनाती है ,
‘किनारा’ करनेवाला बच तो जाता है ,दिल में जगह नहीं मिलती |
[9]
‘हमें ‘मुसलमान’ या ‘ईसाई’ ‘मुक्त भारत’ नहीं चाहिए,
‘धर्म कोई भी हो ,’हमें तो ‘गद्दार मुक्त’ भारत चाहिए’ !
[10]
अच्छाइयों’ के साथ रहा तो सभी को ‘अच्छाइयाँ’ दे पाऊँगा ,
‘बुराइयों’ के पर्दे से ढका रहा , तो ‘दर्द की दास्तां’ हो दूंगा |