Home ज़रा सोचो विजयी बनो, कृतज्ञ बनो,पशुत्व से बचो,भटके को रास्ता दिखाते चलो ‘ |

विजयी बनो, कृतज्ञ बनो,पशुत्व से बचो,भटके को रास्ता दिखाते चलो ‘ |

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जरा सोचो
‘आप ‘विजय’ तो हो परंतु ,’आत्म विजयी’ होना ‘सौभाग्य’ की बात है,
‘ मुकुट ‘  वही  ‘ पहनता ‘  है  जो  ‘कर्म  क्षेत्र’  में  ‘ झंडे ‘  गाड़  देता  है’ !

[2]

जरा सोचो
‘कृतज्ञ’  बनो, किसी  से  मिली  सहायता  के ‘ऋणी’  रहो,
‘ झुक  कर  किया  सम्मान ,’ उत्तम  परिणाम  लाएगा ‘ !

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जरा सोचो
‘जितने  ‘युद्ध’  हुए  आधे ‘कुवचनों’  के  कारण  हुए, ‘ इतिहास ‘  साक्षी  है,
‘आवेश  और  लालच’  के  वशीभूत  प्राणी ‘कुवचनी’ हुए  बिना  नहीं  रहता’ !

[4]

जरा सोचो
‘आपका  ‘पशुत्व’ ‘ घोरतम  पाप’  करा  सकता  है  आपसे,
‘नर-तन’ मिला  है ‘नरपिशाच’ बनने  की  कोशिश  ना  कर’ !

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जरा सोचो
‘कुछ  किए  बिना’  ‘गलती’  नहीं  होती , ‘ गुरु  का  मंत्र  है ,
‘गलतियां’ करोगे तो ‘झिडके’ जाओगे,” तभी समझ पाओगे’ !

[6]

जरा सोचो
‘भाषण  झाड़ते  हो,’ क्या ‘आलोकित’ करने  का ‘ठेका’  लिया  है  आपने,
‘किसी  एक ‘भटके  को  रास्ता’ तो  दिखा, ‘तुझी  को ‘सूफी’  समझ  लेंगे’ !
[7]
जरा सोचो
‘ जिस काम’ को करने से ‘डरते’ हो ,’उसी को ‘दृढ़ता’ से करो,
‘ आत्मविश्वास ‘ जागेगा , ‘ सफलता ‘  भी  कदम  चूमेगी’ !
[8]
जरा सोचो
‘गरीब’  होना  कोई  ‘लज्जा’  नहीं ,’गरीबी  से  लज्जित’ होना  गलत,
‘लज्जा’  के  अनेकों  प्रकार  हैं, ‘प्रतिभा’  को  ‘छुपाया’  नहीं  करते’ !
[9]
जरा सोचो
‘कोरोना संक्रमण’ रोज ‘नए डंक’ मारता  है  हम  कुछ  नहीं  कर  पाते ,
‘फिजाओं  में  ‘लाली  की  भरमार  है ,’ प्रभु  जाने  क्या  होगा  आगे’ ?
[10]
जरा सोचो
‘सद्गुणों  की  स्मृतियां ‘  गर्त  नहीं  होती, ना  ‘धूमिल’  होती  है ,
‘उनकी ‘सुगंध’ युगो तक याद रखते हैं ,’कभी भूली नहीं जाती’ !
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