‘झरना चट्टानों से टकरा कर और तेजी से बहता है ‘,
यूं ही मुसीबतों से पार पा कर ही सफलता मुखरती है ‘|
[2]
‘क्यों हम अपने सदगुणों को ग्रहण लगाने को तत्पर हैं ‘,
‘खड़े हो कर विपत्ति में फंसों की मदद क्यों नहीं करते ‘?
‘इसी को भगवान की पूजा समझ लो, झोली भर जाएगी ‘,
‘ यह कर्म , बुराई पर भलाई की विजय का प्रतीक है “|
[3]
‘हमारे आने मात्र से किसी को आनंद मिलता है तो बड़े भाग्य की बात है’,
‘और अगर वो मुंह बिचकाने लगे तो अफसोस भारी है हमको ‘ |
[4]
मानव तू चेत जा, ‘प्रभु का स्मरण कर ,
‘शांत चित्त हो ध्यान लगा ‘,
‘जब चूड़िया चुग गयी खेत,
‘फिर पछताए क्या होत ‘|
[5 ]
‘संत -संसार में विचरण करते हुए भी महामाया से मुक्त होते हैं ‘,
‘जिम्मेदारियाँ मकसद नहीं , कर्तव्य समझ कर निभाते हैं सभी ‘|
[6 ]
‘सत्संग वो विधा है जहां दानव भी मानवता ग्रहण करते हैं ‘,
‘सत्संग के यज्ञ में मन तप उठता है ,’कुविचारों से बचते हैं ‘|
[7]
‘जो सुख चाहे भोगना तो बस इतना सा कर’ ,
‘मेहनत और ईमानदारी’ की,’असली कमाई कर ‘|
[8]
‘बिना सताये किसी को दौलत कमा’ ,
‘सुख की बरसात हो जाएगी’ ,
‘बेईमानी से कुछ भी कमा ले’ ,
बिदाई पर ज़ेब में कौड़ी नहीं होगी ‘|
[9]
‘पेड़ शांत रह कर छांव परोसते ही रहते हैं , हर कोई आराम पाता है’,
‘खामोशी अनेकों बार वो काम कर जाती है जो धुरंधर करके हार जाते हैं |
[10]
‘यारी निभाने वाला यार मिल जाए ‘ तो ‘दुनियां याद करती है ‘,
कौन कहता है ज्यादा यारी अच्छी नहीं होती’ ‘निभाने का सलीका चाहिए ‘|