Home ज़रा सोचो ‘वस्तुस्थिति को देखने और परखने का दर्ष्टिकोण इंसान और भगवान का अलग होता है ‘ ‘सेवाभाव’ और ‘त्याग’पर निर्भर है ‘ एक बोध कथा !

‘वस्तुस्थिति को देखने और परखने का दर्ष्टिकोण इंसान और भगवान का अलग होता है ‘ ‘सेवाभाव’ और ‘त्याग’पर निर्भर है ‘ एक बोध कथा !

0 second read
0
0
861

” एक  बोध – कथा “—प्रेरणादायक प्रसंग  “|

एक  बार  दो  आदमी  एक  मंदिर  के  पास  बैठे  गपशप  कर  रहे  थे ।  वहां  अंधेरा  छा  रहा  था  और  बादल  मंडरा  रहे  थे ।
थोड़ी  देर  में  वहां  एक  आदमी  आया  और  वो  भी  उन  दोनों  के  साथ  बैठ  कर   गपशप   करने  लगा  ।

कुछ   देर   बाद   वो   आदमी   बोला   उसे   बहुत   भूख   लग   रही   है ,  उन   दोनों   को   भी   भूख   लगने   लगी   थी ।
पहला   आदमी   बोला  ‘ मेरे  पास  3  रोटी  हैं ,  दूसरा  बोला  मेरे  पास  5  रोटी  हैं ,  हम  तीनों  मिल  बांट  कर  खा  लेते  हैं । 
उसके  बाद  सवाल  आया  कि  8  ( 3 + 5)  रोटी  तीन  आदमियों  में  कैसे  बांट  पाएंगे  ??


पहले  आदमी  ने  राय  दी  कि  ऐसा  करते  हैं  कि  हर  रोटी  के  3  टुकडे  करते  हैं  ,  अर्थात  8  रोटी  के  24  टुकडे  ( 8  X  3  = 24 )  हो  जाएंगे                     और  हम  तीनों  में   8 – 8   टुकडे  बराबर  बराबर  बंट  जाएंगे  ।
तीनों  को  उसकी  राय  अच्छी  लगी  और   8   रोटी   के   24  टुकडे  करके  प्रत्येक  ने  8 – 8  रोटी  के  टुकड़े  खाकर  भूख  शांत  की  और    फिर                     बारिश  के  कारण  मंदिर  के  प्रांगण  में  ही  सो  गए ।


सुबह   उठने   पर   तीसरे   आदमी   ने   उनके   उपकार   के   लिए   दोनों  को  धन्यवाद  दिया  और  प्रेम  से  8  रोटी  के  टुकडो़  के  बदले  दोनों   को                   उपहार  स्वरूप  8  सोने  की  गिन्नी  देकर  अपने  घर  की  ओर  चला  गया ।

उसके  जाने  के  बाद  पहला  आदमी  ने  दुसरे  आदमी  से  कहा  हम  दोनों  4 – 4  गिन्नी  बांट  लेते  हैं ।
दुसरा  बोला  नहीं  मेरी  5  रोटी  थी  और  तुम्हारी  सिर्फ  3  रोटी  थी  अतः  मै  5  गिन्नी  लुंगा  ,  तुम्हें  3  गिन्नी  मिलेंगी ।
इस  पर  दोनों  में  बहस  और  झगड़ा  होने  लगा ।

इसके  बाद  वे  दोनों  सलाह  और  न्याय  के  लिए  मंदिर  के  पुजारी  के  पास  गए  और  उसे  समस्या  बताई  तथा  न्यायपूर्ण  समाधान  के  लिए                प्रार्थना  की ।
पुजारी  भी  असमंजस  में  पड़  गया ,  उसने  कहा  तुम  लोग  ये  8  गिन्नियाँ  मेरे  पास  छोड़  जाओ  और  मुझे  सोचने  का  समय  दो ,  मैं  कल                    सबेरे  जवाब   दे  पाऊंगा ।
पुजारी  को  दिल  में  वैसे  तो  दूसरे  आदमी  की  3 – 5  की  बात  ठीक  लगी  रही  थी  पर  फिर  भी  वह  गहराई  से  सोचते  सोचते  गहरी   नींद                           में   सो   गया ।
कुछ  देर  बाद  उसके  सपने  में  भगवान  प्रगट  हुए  तो  पुजारी  ने  सब  बातें  बताई  और  न्यायिक  मार्गदर्शन  के  लिए  प्रार्थना  की  और  बताया                     कि  मेरे  ख्याल  से  3 – 5  बंटवारा  ही  उचित  लगता  है ।

भगवान  मुस्कुरा  कर  बोले –  नहीं  ।   पहले   आदमी  को  1  गिन्नी  मिलनी  चाहिए  और  दुसरे  आदमी  को  7  गिन्नी  मिलनी  चाहिए ।
भगवान  की  बात  सुनकर  पुजारी  अचंभित  हो  गया  और  अचरज  से  पूछा –  *प्रभू  ऐसा  कैसे  ?*

भगवन  फिर  एक बार  मुस्कुराए  और  बोले  :

इसमें  कोई  शंका  नहीं  कि  पहले  आदमी  ने  अपनी  3  रोटी  के  9  टुकड़े  किये  परंतु  उन  9  में  से  उसने  सिर्फ  1  बांटा  और  8  टुकड़े  स्वयं  खाया         अर्थात  उसका  * त्याग *  सिर्फ  1  रोटी  के  टुकड़े  का  था  इसलिए  वो  सिर्फ  1  गिन्नी  का  ही  हकदार  है  ।
दुसरे  आदमी  ने  अपनी  5  रोटी  के  15  टुकड़े  किये  जिसमें  से  8  तुकडे  उसने  स्वयं  खाऐ  और  7  टुकड़े  उसने  बांट  दिए ।  इसलिए  वो  न्यायानुसार         7  गिन्नी  का  हकदार  है . . ये  ही  मेरा  गणित  है  और  ये  ही  मेरा  न्याय  है !

ईश्वर  की  न्याय  का  सटीक  विश्लेषण  सुन  कर  पुजारी   उनके  चरणों  में  नतमस्तक  हो  गया ।

इस  कहानी  का  सार  ये  ही  है  कि  हमारा  वस्तुस्थिति  को  देखने  का ,  समझने  का  दृष्टिकोण  और  ईश्वर  का  दृष्टिकोण  एकदम   भिन्न  है ।   हम        ईश्वरीय   न्यायलीला   को   जानने  समझने   में   सर्वथा  अज्ञानी   हैं  । 
हम  अपने   त्याग  का   गुणगान   करते   है   परंतु   ईश्वर   हमारे  त्याग   की   तुलना   हमारे   सामर्थ्य   एवं   भोग  तौर  कर    यथोचित   निर्णय  करते  हैं ।

यह   महत्वपूर्ण   नहीं   है   कि   हम   कितने   धन   संपन्न   है  ,   महत्वपूर्ण   यहीं   है   कि   हमारे   सेवाभाव   कार्य   में  त्याग   कितना   है  । 🙏🙏

 
 
 
Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In ज़रा सोचो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…