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रे मानव , उड़ना तुझे अकेले है

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दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है

चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है
चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

नन्हे कोमल पंख ये तेरे
और गगन ये दूरी……

बैठ गया तो होगी मन की
कैसे अभिलाषा पूरी

उसका नाम अमर है जग मे
जिसने संकट झेला है

चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है
चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

चतुर शिकारी ने रखा है जाल बिछा कर पग पग पर

फंस मत जाना भूल से पगले
पछतायेगा जीवन भर

लोभ मे दाने के मत पड़ना
बड़े समझ का खेला है

चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है
चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

जब तक सूरज आसमान पर
बढता चल तू चलता चल

घिर जायेगा अंधकार जब
बड़ा कठिन होगा पल- पल

किसे पता के उड़ चलने का
आ जाता कब बेला है

चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर
उड़ना तुझे अकेला है…..

दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है
चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर

दुःख मे मत घबराना पंछी
ये जग दु:ख का मेला है
चाहे भीड़ बहुत अम्बर पर

उड़ना   तुझे   अकेले   है  |

?जय जय श्री गौरी शंकर?

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