[1]
जरा सोचो
‘हम इंसान हैं या नहीं’, इस बात को कभी नहीं सोचा,
‘ भगवान है या नहीं ‘,पर तुम ‘व्याख्यान’ जारी करते हो ,
‘परिंदों’ हेतु रोज पानी से भरा ‘ कटोरा ‘ रोज रखते हो ,
‘मानवीय मूल्यों’ की अवहेलना करके, ‘कत्ल’ रोज करते हो !
[2]
जरा सोचो
न हमारी ‘ बात ‘ समझते हो , न अपनी ‘ समझाते ‘ हो,
‘आपसदारी’ खत्म हो जाएगी, ‘समभाव’ में जीने की ‘कोशिश’ करो !
न हमारी ‘ बात ‘ समझते हो , न अपनी ‘ समझाते ‘ हो,
‘आपसदारी’ खत्म हो जाएगी, ‘समभाव’ में जीने की ‘कोशिश’ करो !
[3]
जरा सोच
‘निडर’ और ‘संकल्पी’ प्राणी, ‘अनहोनी’ से बचा रहता है,
‘गहरे घाव’ पिघलने लगते हैं , ‘ सूर्य ‘ उदय होता ही है !
‘निडर’ और ‘संकल्पी’ प्राणी, ‘अनहोनी’ से बचा रहता है,
‘गहरे घाव’ पिघलने लगते हैं , ‘ सूर्य ‘ उदय होता ही है !
[4]
जरा सोचो
‘रिश्ते’ खत्म करने हैं तो ‘ स्वार्थ ‘ की ‘डंडी’ लगा दो,
‘रिश्तों’ की कवायद ‘चकनाचूर’, ‘तजुर्बा’ कीजिए जनाब !
‘रिश्ते’ खत्म करने हैं तो ‘ स्वार्थ ‘ की ‘डंडी’ लगा दो,
‘रिश्तों’ की कवायद ‘चकनाचूर’, ‘तजुर्बा’ कीजिए जनाब !
[5]
जरा सोचो
‘स्नेह के चर्चे’ हमारे परिवारों में ‘महकने’ चाहिए,
‘सुबह हो या शाम का मंजर, बस ‘आनंद’ बहना चाहिए !
‘स्नेह के चर्चे’ हमारे परिवारों में ‘महकने’ चाहिए,
‘सुबह हो या शाम का मंजर, बस ‘आनंद’ बहना चाहिए !
[6]
जरा सोचो
‘आरक्षण’ ‘देशद्रोही प्रथा’ है, ‘प्रतिभाएं’ ‘पलायन’ कर रही है देश से,
यदि यह ‘बीमारी’ खत्म नहीं होती , ‘मुल्क’ को पुनः ‘गुलाम’ देखेंगे !
‘आरक्षण’ ‘देशद्रोही प्रथा’ है, ‘प्रतिभाएं’ ‘पलायन’ कर रही है देश से,
यदि यह ‘बीमारी’ खत्म नहीं होती , ‘मुल्क’ को पुनः ‘गुलाम’ देखेंगे !
[7]
जरा सोचो
‘मुझे’ अपना ही समझा, ‘जीने का’ यही ‘आधार’ है
‘नफरत’ से निहारते तो, कभी का ‘मर’ गया होता !
‘मुझे’ अपना ही समझा, ‘जीने का’ यही ‘आधार’ है
‘नफरत’ से निहारते तो, कभी का ‘मर’ गया होता !
[8]
जरा सोचो
जब तुम्ही ‘मोहब्बत’, तुम्हीं ‘हमसफर’, तुम्ही ‘दोस्त’ हो मेरे,
‘ जिंदगी ‘ का सफर ‘ आराम से ‘ कट जाएगा यूं ही !
जब तुम्ही ‘मोहब्बत’, तुम्हीं ‘हमसफर’, तुम्ही ‘दोस्त’ हो मेरे,
‘ जिंदगी ‘ का सफर ‘ आराम से ‘ कट जाएगा यूं ही !