Home Uncategorized ‘रिस्ते’ खत्म करने हैं तो ‘स्वार्थ’ की डंडी लगा , ‘स्नेह’ के चर्चे ‘महकने’ चाहिए |

‘रिस्ते’ खत्म करने हैं तो ‘स्वार्थ’ की डंडी लगा , ‘स्नेह’ के चर्चे ‘महकने’ चाहिए |

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जरा सोचो
‘हम  इंसान  हैं  या  नहीं’, इस  बात  को  कभी  नहीं  सोचा,
‘ भगवान  है  या  नहीं ‘,पर  तुम ‘व्याख्यान’ जारी  करते  हो ,
‘परिंदों’  हेतु  रोज  पानी  से  भरा  ‘ कटोरा ‘  रोज  रखते  हो ,
‘मानवीय  मूल्यों’  की अवहेलना  करके, ‘कत्ल’ रोज  करते  हो !
[2]
 जरा सोचो
न  हमारी  ‘ बात ‘  समझते  हो ,  न  अपनी  ‘ समझाते ‘  हो,
‘आपसदारी’ खत्म  हो  जाएगी, ‘समभाव’  में जीने  की ‘कोशिश’  करो !
[3]
 जरा सोच
‘निडर’ और ‘संकल्पी’  प्राणी, ‘अनहोनी’  से  बचा  रहता  है,
‘गहरे  घाव’  पिघलने  लगते  हैं , ‘ सूर्य ‘  उदय  होता  ही  है !
[4]
जरा सोचो
‘रिश्ते’  खत्म  करने  हैं  तो  ‘ स्वार्थ ‘  की  ‘डंडी’  लगा  दो,
‘रिश्तों’ की  कवायद ‘चकनाचूर’, ‘तजुर्बा’  कीजिए  जनाब !
[5]
जरा सोचो
‘स्नेह  के  चर्चे’  हमारे  परिवारों  में  ‘महकने’  चाहिए,
‘सुबह  हो  या  शाम  का  मंजर, बस  ‘आनंद’ बहना  चाहिए !
[6]
जरा सोचो
‘आरक्षण’  ‘देशद्रोही  प्रथा’  है,  ‘प्रतिभाएं’  ‘पलायन’  कर  रही  है  देश  से,
यदि  यह  ‘बीमारी’  खत्म  नहीं  होती , ‘मुल्क’  को  पुनः  ‘गुलाम’  देखेंगे !
[7]
जरा सोचो
‘मुझे’  अपना  ही  समझा, ‘जीने  का’  यही  ‘आधार’  है
‘नफरत’  से  निहारते  तो, कभी  का  ‘मर’  गया  होता !
[8]
जरा सोचो
जब  तुम्ही  ‘मोहब्बत’, तुम्हीं  ‘हमसफर’,  तुम्ही  ‘दोस्त’  हो  मेरे,
‘ जिंदगी ‘  का  सफर  ‘ आराम  से ‘  कट  जाएगा  यूं  ही  !
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