// राम -नाम – यज्ञ //
यह सत्य है कि ईश्वर मन-बुद्धि से परे , अगोचर और अचिन्त्य है , किन्तु साहब !वह एक महान जादूगर भी है , हाँ यह बात अलग है की भगवान मनुष्य के समान अर्थोपार्जन के लिए अपनी दूकान नहीं चलाते हैं , परन्तु भैया भक्त हो या अभक्त, प्रेमी हो या विद्रोही , संत हो या असंत – सभी को अपने जादू तो दिखलाते ही हैं , जिनको हम साधना में होने वाले चमत्कारी अनुभवों की संज्ञा भी प्रदान करते हैं l
अरे राम जी ने तो अपनी माता को भी न छोड़ा , उनको ऐसा जादू दिखलाया कि वे भी भ्रमित होकर सोचने लगीं —“ इहाँ उहाँ दोउ बालक देखा मति भ्रम मोरि की आन विसेषा l”
हमारे हनुमान जी भी कुछ कम नही , राम-विद्रोही लंकावासी राम-नाम से भी घ्रणा करते थे , राम-नाम-यज्ञ की महिमा बतलाने के लिए उन्होंने लंका में ही विराट राम-नाम-यज्ञ किया l लंकावासी स्वयं यज्ञ-सहयोगी बन गये , सीताजी को आत्म – त्याग करने के लिए अग्नि ही न मिली थी , उन्होंने स्वयं अपने करों से तेल, घी, कपड़े आदि की व्यवस्था कर, हनुमत- पूँछ में अग्नि प्रज्वलित कर दी , लंका यज्ञ-कुंड , सुपारी , जौ , तिल और धान बन गये , हनुमत – पूँछ स्त्रुवा और शत्रु हवि बन गये और हाँक रूपी स्वाहा मन्त्र द्वारा अन्जिनी नन्दन हवन करने लगे l
एक ही पल में लंका में भगदड़ मच गई , भयभीत लंकावासी “ बाप रे बाप ऐसा यज्ञ हमने कभी नहीं देखा , इसकी लपटों को तो समुद्र और सावन का मेघ भी नहीं बुझा सकते हैं ” कहते हुए रावण को भी जबरदस्ती धकेल कर दूर ले गये l नारियाँ शीष धुन-धुन कर लंकेश को दसमुआ और बावला कहते और गालियाँ देते हुए धिक्कारने लगीं l दसों दिशाओं में ज्वालमालाओं की भयंकर लपटें फ़ैल गईं l रावण ने प्रयलन्कारी मेघों को जल वृष्टि कर अग्नि को बुझाने का आदेश दिया , उन्होंने जल-वृष्टि तो की किन्तु उस जल ने भी अग्नि में धृत का ही काम किया l
लंका में सोने की सरिताएँ प्रवाहित होने लगीं , जो सोना अप्रज्वलनशील होता है , वह भी धू-धू कर जलने लगा , लोग चीख-चीख कर कहने लगे —
“बाप रे बाप “ हमने वाराहों सूर्य देखे , प्रलय की अग्नि देखी और अनेकों बार शेषनाग के मुख की ज्वाला देखी , किन्तु जल को धृत के समान हुआ नहीं देखा l ”
आश्चर्य-जनक यह था कि लंका में एक मात्र विभीषण का भवन अग्नि से अप्रभावित रहा , जिस रावण को श्री हरि-यज्ञों के विध्वंस करने में बहुत सुख मिलता था , जिसके चलने मात्र से धरा कम्पायमान होती थी , देवता जिसके भवन में पानी भरते थे , वही हाथ पर हाथ रखे भौंचक्का सा हनुमत-क्रीडा देखता रहा और रसवैद्य हनुमान जी ने लंका रूपी शिकारे को ठीक करके राक्षस रूपी बूटियों के रस में लंका के सोने और रत्नों को फूँक कर मृगांक ओषधि बना डाला l