Home कविताएं “‘रामनवमी ” और ” दशहरे ” के उपलक्ष में मेरे मन के भाव “

“‘रामनवमी ” और ” दशहरे ” के उपलक्ष में मेरे मन के भाव “

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[1]

‘जब  भी  बाज़ार  गया’ , ‘ मैं ,कभी  कुछ  खरीद  नहीं  पाया ,’
‘जवानी में पैसे की तंगी रही’ ,’अब बुढ़ापे में ख्वाहिशें खतम ‘|

[2]

‘जिसकी नीयत साफ’और ‘मकसद  सही’ हो’ ‘परेशा  हो  नहीं  सकता ,’
प्रभु को भी ऐसे बंदों की तलाश है’ ,’मेहरबान हो कर बरसता है उनपर ‘|

[3]

“प्रभु उवाच “–
‘ तूने तकलीफ उठा कर भी किसी का भला कर दिया ,तो तू मेरा है ,’
‘किसी को दुःखी करके अपनी दुआ मांगता है’,’अब क्या करूँ तेरा ‘?

[4]

‘ अहंकार ‘ सदा  चाहता  है  हर  कोई  माफी  मांगे  उससे ,’
‘प्रेम’ माफी मांग कर खुश है ,’दोनों के फलसफे ज़ुदा-ज़ुदा ‘|

[5]

‘आदर्श माता-पिता’ ‘आदर्श गुरु’,’आदर्श पत्नी’,’आदर्श भाई’ ,
‘संस्कार  भी  आदर्श ‘ जिसके  हों’ ,’राम’ उसी  का  नाम  है ‘|

[6]

‘भगवान राम केआदर्शो पर चलकर ,
‘रावण नीति को खतम करते चलो ,’
‘जीवन  में  विसंगतियाँ  बहुत   हैं , 
‘अध्यात्म से दूर होते जा रहे हैं हम’|

[7]

राम नवमी के शुभ अवसार पर ” !
‘तुझमें  रमा  हुए  प्रभु  राम  ही’ ‘ तेरी  आत्मा  का  मूल  है ,’
‘वो तो सारी कायनात का रचियता है ,उससे नाता  जोड़ ले ,’ 
‘हम सांसारिक जंजीरों में जकड़े पड़े हैं,निजात नहीं मिलती ,’
तू , असीम , अज़र,शाश्वत राम ” को जीवन में जीवंत बना ‘|

[8]

‘गर राम रस जुबां पर चढ़ गया’ ,
‘तो  क्या  घट  जाएगा  तेरा ? ‘
‘प्रभु’-‘कृपा पात्र बन जाएगा’,
‘शरण मिल जाएगी उसकी ‘|

[9]

‘तू कैसा सपूत है मेरा ,मुझे याद करने की फुर्सत नहीं तुझको’,
‘तेरी आत्मा में  निवास करता हूँ,’अंदर  झांक  तो लेता कभी ‘|

[10]

‘कभी  गरूर  ना  आए’ ‘ऐसी  कृपा  करना  ‘प्रभु  श्री  राम’ ,
‘वो कार्य जरूर करवाना मुझसे’,’जिससे दुआएं मिलती रहें ‘ |

[11]

‘कुछ लोग ‘भ्रष्टाचार”अपराध”कुकर्म’ व ‘बेशर्मी’ ‘ओढ़ कर दशहरा मनाते हैं’ ,
‘ सच्चे हिंदुस्तानी बनों ‘ ,’ इस दशहरे पर सभी बुराइयों को पूरा जला डालो ‘ ,
‘ क्या ले कर पैदा हुए ‘ और’ क्या- क्या ले कर जाओगे ‘,’ बताओ  तो  ज़रा ‘ ,
‘ आज सबको गले लगाओ ‘ , ‘ जीवन के हर पल को आनंद में बदल डालो ‘ |

[12]

‘राम  भक्त  हनुमान’ राम  राम  रटते , कभी  नहीं थकते ,’
‘कपट , व्यभिचार ,अनिष्ट  की  भावना ,पास नहीं आती ,’
‘राम और हनुमान ‘ को आराध्य बना कर जप कर देखो ,’
‘क्रंदन के दिन लद जाएंगे,’कुन्दन’ बन कर उभर जाओगे ‘|

[13]

“दशहरे के अवसर पर कामना”:-
‘सभी  सुखकारी बने  रहें , दुःखों से कोसों  दूर  रहें ‘,
‘धनधान्य से भरपूर रहें , व्यभिचारों  से  बचे  रहें ,’
‘बल, बुद्धि, तेज  प्रकाश , जीवन में सदा छाया रहे ,’
हर प्राणी-सेवाभावी बने और भक्ति-भाव से पूर्ण हों ‘|

[14]

दशहरे के शुभ अवसर पर —
‘सही  है हम  पतंग हैं और हमारी  डोर प्रभु के  हाथ  में  है’ ,
‘कर्म करने की स्वतन्त्रता तुम्हारी है,फिर अच्छा ही करो ,
‘भ्रम के दीप बुझा कर,परमदीप को प्रज्वलित करते रहो’ , 
‘अहंकार के कारागार से निकलो ,यह जाग्रति सार्थक  है ‘|

[15]

दशहरा[ विजय दशमी ] पर —
‘अंधकार से प्रकाश की ओर,’असत्य से सत्य ,’अज्ञान से ज्ञान’ की ओर चलो’ ,
‘मोह  व निद्रा  को  त्यागो ,प्रभु  से ज्ञान-ज्योति प्रदान करने की प्रार्थना करो ,’
‘मानव- एक शक्ति  तो  हो  सकता  है , महा-शक्ति नहीं , इसका  चिंतन  करो ,’
‘स्वम को जगाओ क्योंकि आत्म-जागरण से परमार्थ की खोज शुरू होती है’ |

 

 

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