[1]
जरा सोचो
‘दूसरों’ को सुनना , समझना , और सम्मान देना, ‘आदत’ बना अपनी,
यह ‘सफलता का सोपान’ है, ‘संगठित’ परिवार की संपूर्ण ‘व्याख्या’ है !
[2]
जरा सोचो
रोज ‘मंदिर’ में ‘माथा’ टिका कर, ‘धर्मराज’ बनने की कोशिश ना कर,
बस ‘सत्कर्म’ की झड़ी लगा, किसी के ‘काम’ आ, जिह्वा से ‘अमृत’ टपका !
[3]
जरा सोचो
‘राधे’ का नाम ‘ भक्ति ‘, ‘ कृष्ण ‘ का नाम ‘ मुक्ति ‘ है,
तू किस चीज में ‘विभक्त’ है ? ‘राह’ सुमरन की पकड़ !
[4]
जरा सोचो
‘अपनों’ के निकट आते ही ‘मुस्कुराओ’, ‘गमों’ को भूलते जाओ,
‘ भेदभाव ‘ सब मिट जाएंगे , ‘ खुशी के रंग ‘ भर जाएंगे !
[5]
जरा सोचो
अपने ‘स्नेह’ और ‘व्यवहार’ के ‘चुंबक’ को कहीं ‘चप्पा’ तो कर,
कहीं भी कैसा भी ‘विरोधी’ हो ? एक दिन ‘बिछ’ जाएगा तेरे लिए !
[6]
जरा सोचो
‘डर’ से जिओगे तो ‘मर’ जाओगे,
‘विश्वास’ से जिओगे तो ‘जी’ जाओगे !
[7]
जरा सोचो
‘अच्छे दोस्त’ और ‘अच्छे रिश्ते’ ‘किस्मत’ वालों को ही मिलते हैं,
तुम ‘ दौलत ‘ से नापते रहे ‘ उनको ‘, तुमसा ‘ दरिद्र ‘ कोई नहीं !
[8]
जरा सोचो
ज्यादा ‘गम’ या ‘खुशी’, ‘आंसुओं’ को बाहर निकाल लाते हैं,
हर ‘मौसम’ में ‘तटस्थ भाव’, जीवन की ‘गरिमा’ बनाए रखते हैं !
[9]
जरा सोचो
‘राम’ नाम ‘आधार’ हो जिनका, ‘पत्थर’ भी ‘तर’ जाते हैं,
जिनका ‘आधार’ ही ‘पत्थर’ हो, ‘डूबना” सुनिश्चित है !
[10]
जरा सोचो
‘प्यार बांटो , सम्मान बांटो, या भोजन’, प्रभु ! ‘वापिस’ भेज देते हैं ,
‘ताउम्र’ सब कुछ ‘इकट्ठा’ करता रहा जालिम, अंत में ‘हाथ’ खाली थे !