Home ज़रा सोचो ‘ये बाते’ — अपना दिल निकाल कर लाया हूँ आपकी खातिर ” -“नजारा समझने का प्रयास तो करें ” |

‘ये बाते’ — अपना दिल निकाल कर लाया हूँ आपकी खातिर ” -“नजारा समझने का प्रयास तो करें ” |

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जरा  सोचो
‘आपकी  दया’  के  दो  ‘शब्द’  यदि  किसी  को ‘प्रसन्नता’  प्रदान  करते  हैं,
‘ फौरन ‘  करो  ‘ अंधेरे  में  प्रकाश ‘  फैलाना , ‘ सर्वोत्तम ‘  प्रयास  है’ !
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 जरा  सोचो
‘यादों  के  समंदर ‘  में  गोते  लगाने  में  ‘ मस्त ‘  रहता  हूं,
‘हम  क्या  करें ? उन्हें ‘भूल’ जाने  की ‘फुर्सत’ नहीं  मिलती’ !
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 जरा  सोचो
‘मैं’  तो  इसी  बात  में  ‘ खुश ‘  हूं  कि  ‘तुम’  बहुत  ‘खुश’  हो,
‘अगर  सही ‘दुआ’  भी  करते  तो  कभी  के ‘हमारे’ हो गए होते’ !
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जरा  सोचो
‘मोहब्बत’  तो  अक्सर  ‘ चेहरे ‘  से  शुरू  ‘ बिस्तर ‘  पर  खत्म,
‘इश्क’ जुझारू’  है, आखरी  दम तक  ‘दिल  में’  बसा  रहता  है’ !
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जरा  सोचो
‘हमें  तो  ‘बारिश  की  बूंदे’ ही  समझा,’ क्या  बचा  होगा  यह  तो  बता’ ?
‘बूंदे’  बारिश  में ‘खूब  नाचती’  हैं , ‘बारिश  खत्म’  वह  भी  ‘ खत्म ‘ !
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जरा  सोचो
‘आपसदारी’  निभानी  हो  तो  ‘नमृता’  को  ‘औढ’  लेना  चाहिए,
‘छल कपट’ में  ही  लिपटे  रहे, तो ‘महाभारत’  ही  लिख  पाओगे’ !
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जरा  सोचो
‘दर्पण’  झूठ  नहीं  बोलता, चेहरे  के  दाग  दिखाता  है , हम  उसे  छोड़ते   नहीं ,
‘हम अपनी कमियों  पर ऊब जाते  हैं, उन्हें दूर करने का  सार्थक प्रयास  नहीं करते !
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जरा  सोचो
‘ मोह  ममता ‘  की  कढ़ाई  में  पक  कर  ‘निढाल’  होता  जा  रहा  है  तू ,
‘चिड़िया’  बच्चों  के ‘पंख’  लगते  ही ‘आजाद’ करने  में  देर  नहीं  करती’ !
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जरा  सोचो
‘ मैं  हूं  ना ‘  कह  कर  ‘ दर्द  पर  मरहम ‘  रखने  का  काम  करते  हो,
‘पर ‘चरितार्थ’ तभी होगा जब, किसी की ‘उलझनों में काम’ आ जाओ’ !
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जरा  सोचो
‘दोस्ती ,वायदा , रिश्ता , दिल  और  विश्वास , कभी  ‘तोड़’  मत  देना,
‘टूटने  में ‘आवाज’ नहीं  आती  पर, ‘जालिम  दर्द ‘  बहुत  मिलता  है’ !
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