[1]
जरा सोचो
‘आपकी दया’ के दो ‘शब्द’ यदि किसी को ‘प्रसन्नता’ प्रदान करते हैं,
‘ फौरन ‘ करो ‘ अंधेरे में प्रकाश ‘ फैलाना , ‘ सर्वोत्तम ‘ प्रयास है’ !
‘आपकी दया’ के दो ‘शब्द’ यदि किसी को ‘प्रसन्नता’ प्रदान करते हैं,
‘ फौरन ‘ करो ‘ अंधेरे में प्रकाश ‘ फैलाना , ‘ सर्वोत्तम ‘ प्रयास है’ !
[2]
जरा सोचो
‘यादों के समंदर ‘ में गोते लगाने में ‘ मस्त ‘ रहता हूं,
‘हम क्या करें ? उन्हें ‘भूल’ जाने की ‘फुर्सत’ नहीं मिलती’ !
‘यादों के समंदर ‘ में गोते लगाने में ‘ मस्त ‘ रहता हूं,
‘हम क्या करें ? उन्हें ‘भूल’ जाने की ‘फुर्सत’ नहीं मिलती’ !
[3]
जरा सोचो
‘मैं’ तो इसी बात में ‘ खुश ‘ हूं कि ‘तुम’ बहुत ‘खुश’ हो,
‘अगर सही ‘दुआ’ भी करते तो कभी के ‘हमारे’ हो गए होते’ !
‘मैं’ तो इसी बात में ‘ खुश ‘ हूं कि ‘तुम’ बहुत ‘खुश’ हो,
‘अगर सही ‘दुआ’ भी करते तो कभी के ‘हमारे’ हो गए होते’ !
[4]
जरा सोचो
‘मोहब्बत’ तो अक्सर ‘ चेहरे ‘ से शुरू ‘ बिस्तर ‘ पर खत्म,
‘इश्क’ जुझारू’ है, आखरी दम तक ‘दिल में’ बसा रहता है’ !
‘मोहब्बत’ तो अक्सर ‘ चेहरे ‘ से शुरू ‘ बिस्तर ‘ पर खत्म,
‘इश्क’ जुझारू’ है, आखरी दम तक ‘दिल में’ बसा रहता है’ !
[5]
जरा सोचो
‘हमें तो ‘बारिश की बूंदे’ ही समझा,’ क्या बचा होगा यह तो बता’ ?
‘बूंदे’ बारिश में ‘खूब नाचती’ हैं , ‘बारिश खत्म’ वह भी ‘ खत्म ‘ !
‘हमें तो ‘बारिश की बूंदे’ ही समझा,’ क्या बचा होगा यह तो बता’ ?
‘बूंदे’ बारिश में ‘खूब नाचती’ हैं , ‘बारिश खत्म’ वह भी ‘ खत्म ‘ !
[6]
जरा सोचो
‘आपसदारी’ निभानी हो तो ‘नमृता’ को ‘औढ’ लेना चाहिए,
‘छल कपट’ में ही लिपटे रहे, तो ‘महाभारत’ ही लिख पाओगे’ !
‘आपसदारी’ निभानी हो तो ‘नमृता’ को ‘औढ’ लेना चाहिए,
‘छल कपट’ में ही लिपटे रहे, तो ‘महाभारत’ ही लिख पाओगे’ !
[7]
जरा सोचो
‘दर्पण’ झूठ नहीं बोलता, चेहरे के दाग दिखाता है , हम उसे छोड़ते नहीं ,
‘हम अपनी कमियों पर ऊब जाते हैं, उन्हें दूर करने का सार्थक प्रयास नहीं करते !
[8]
जरा सोचो
‘ मोह ममता ‘ की कढ़ाई में पक कर ‘निढाल’ होता जा रहा है तू ,
‘चिड़िया’ बच्चों के ‘पंख’ लगते ही ‘आजाद’ करने में देर नहीं करती’ !
‘ मोह ममता ‘ की कढ़ाई में पक कर ‘निढाल’ होता जा रहा है तू ,
‘चिड़िया’ बच्चों के ‘पंख’ लगते ही ‘आजाद’ करने में देर नहीं करती’ !
[9]
जरा सोचो
‘ मैं हूं ना ‘ कह कर ‘ दर्द पर मरहम ‘ रखने का काम करते हो,
‘पर ‘चरितार्थ’ तभी होगा जब, किसी की ‘उलझनों में काम’ आ जाओ’ !
‘ मैं हूं ना ‘ कह कर ‘ दर्द पर मरहम ‘ रखने का काम करते हो,
‘पर ‘चरितार्थ’ तभी होगा जब, किसी की ‘उलझनों में काम’ आ जाओ’ !
[10]
जरा सोचो
‘दोस्ती ,वायदा , रिश्ता , दिल और विश्वास , कभी ‘तोड़’ मत देना,
‘टूटने में ‘आवाज’ नहीं आती पर, ‘जालिम दर्द ‘ बहुत मिलता है’ !
‘दोस्ती ,वायदा , रिश्ता , दिल और विश्वास , कभी ‘तोड़’ मत देना,
‘टूटने में ‘आवाज’ नहीं आती पर, ‘जालिम दर्द ‘ बहुत मिलता है’ !