Home राजनीति मोदी के बाहरी दौरों का असली सच –ध्यान से जरूर पढ़ें

मोदी के बाहरी दौरों का असली सच –ध्यान से जरूर पढ़ें

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#जरूर_पढ़ें_यदि_आपने_इस_पोस्ट_को_नहीं_पढ़ा_तो_FB_पर_रहना_बेकार_है_पढ़ें_फिर_विचार_करें –

तीसरा #विश्वयुद्ध   कैसे   होगा   और   इसमें   भारत   और   #मोदी   की   क्या भूमिका   होगी   और   ये   मोदी   देश   को   जलता   छोड़कर   बार-२   विदेश   में क्यों    को   जाता   है   ?  जैसे   सवालों   का   जवाब   देता   SAVE   करके  रखने योग्य   वो   लेख   जो   जिसने   नहीं   पढ़ा   उसने   ”   कल   #क्या   होने   वाला       है   ”   को   आज   ही   जानने   का   अवसर   खो   देगा ..

——-— ” The Great Game ” ——–

अगर   आप   इतिहास   को   गौर   से   देखेंगे   तो   पायेंगे   कि   वर्तमान   में   विश्व की   महाशक्तियों   में   एक   उसी   प्रकार   की   आपाधापी   और   लेनदेन   का  खेल चल   रहा   है   जैसा   कि   15वीं – 16वीं   शताब्दी   में   यूरोपीय   शक्तियों   में उपनिवेशीकरण   को   लेकर   विश्व   की   बंदरबांट   को   लेकर   चला   था  । उपनिवेशीकरण   ने   औद्यौगिक   क्रांति   को   सफल   बनाकर   पश्चिम   को   आर्थिक रूप   से   तो   शक्तिशाली   बना   दिया   परंतु   औद्योगिक   क्रांति   और   पूँजीवाद   के फलस्वरूप   ‘   बाजार   और   मांग   ‘   की   आवश्यकता   ने   एक   ऐसे   भस्मासुर को   जन्म   दिया   जिसके   कारण   पृथ्वी   के   असीम   संसाधन   भी   कम   पड़ने लगे   हैं   ।   इस   भस्मासुर   का   नाम   है   ‘ उपभोक्तावाद ‘ और   ये   एक   ऐसा असुर   भी   है   जिसकी   भूख   अगर   शांत   ना   की   जाये   तो   यह   मानव सभ्यता   को   ही   निगल   लेगा   और   सबसे   बुरी   बात   ये   है   कि   इसके   उदर में   जितना   भोजन   डाला   जाता   है   ,   इसकी   भूख   उतनी   ही   बढती   जाती   है   जिसके   कारण   पृथ्वी   के   संसाधन   चुकते   जा   रहे   हैं   और   पृथ्वी   एक गंभीर   ‘  Ecological   crisis  ‘   से   गुजर   रही   है   जिसका   नाम   है   ‘   Decline   Carrying   Capacity   ‘  जिसे   सरल   शब्दों   में   कहूँ   तो   अपने अपने   क्षेत्र   ( देशों )  में   जनसंख्या   को   जिंदा   बनाये   रखने   के   लिये  आवश्यक   संसाधनों   की   क्षमता   में   कमी   ।

उपलब्ध   आंकड़ों   के   अनुसार   रूस   के   पास   ‘ साइबेरिया ‘  के   रूप   में      अगले   150   सालों   के   लिये   पर्याप्त   खनिज   संसाधन   है   और   साथ   ही   उसने   अंटार्कटिका   पर   अपना   दावा   ठोक   दिया   है   जिसमें   भारी   मात्रा        में   खनिज   संसाधन   दबे   हुए   हैं  ।

इसी   तरह   अमेरिका   ने   भी   अगले   150 – 200  साल   के   लिये   खनिजों   और तेल   का   तो   बंदोबस्त   किया   हुआ   है   और   फिलहाल   वह  ‘  दूसरों  के  माल ‘ पर   डाका   डालकर   एश   कर   रहा   है   ।

विश्व   की   तीसरी   सबसे   बड़ी   शक्ति   चीन   ने   भी   तनिक   बदले   हुये   रूप      में   यह   पॉलिसी   बना   रखी   है   कि   वह   भारत   जैसे   बेवकूफ   और   कई  भ्रष्ट देशों   से   भारी   मात्रा   में   अयस्क   खरीद  कर   खनिजों   के   सुरक्षित   भंडार   बना   रहा   है  ।

अब   रहा   ‘भोजन ‘   जिसके   लिये   अमेरिका   बिल्कुल   चिंतित   नहीं   क्योंकि उसके   पास   पर्याप्त   से   भी   कई   गुना   भूमि   व   कृषि   संसाधन   हैं   और ऑस्ट्रेलिया   व   कनाडा   के   रूप   में   विश्वस्त   मित्र   हैं   और   सच   कहा   जाये  तो   ये   अमेरिका   की   परछांई   हैं   जिनके   द्वारा   अपार   मात्रा   में   दूध   ,मछली व   मांस   की   आपूर्ति   की   गारंटी   है  ।
दूसरी   तरफ   रूस   के   लिये   भोजन   व   गर्म   पानी   के   बंदरगाह   उसकी   सबसे बड़ी   कमजोरी   है   इसी   कारण   रूस   यूक्रेन   जिसे   यूरोप   का   ‘  अन्न  भंडार ‘ कहा   जाता   है   ,  को   किसी   भी   हालात   में   अपने   शिकंजे   में   बनाये   रखना चाहता   है   और   ”  क्रीमिया   विवाद  ”  की   जड़   यही  है  ।
चीन   के   सामने   भी   भोजन   के   लिये   कृषि  भूमि   की   कमी   व   समुद्र   में कमजोरी   मुख्य   संकट   है   जिसके   लिये   उसने   अजीब   हल   निकाला   है । उसने   एक   ओर   तो   हिंद   महासागर   में  ” पर्ल  स्ट्रिंग  ”  का   निर्माण   शुरू किया   है   और   दूसरी   ओर   अफ्रीका   में   हजारों   एकड़   जमीन   को   लीज   पर लेना   शुरू   किया   है   ताकि   वहां   वह   व्यापारिक   फसलों   को   उगा   सके  और खुद   अपनी   भूमि   पर   खाद्यान्न   फसलों   को   पैदा  कर  सके ।

विशेषज्ञों   की   मानें   तो   पृथ्वी   के   संसाधन   अब   चुक   रहे   हैं   जिसमें फिलहाल   दो   चीजें   सबसे   मुख्य   हैं —

…………..” पैट्रोल और पानी “….………..

वर्तमान   जंग   पैट्रोल   की   है   और   भविष्य   का   संघर्ष   पानी   को   लेकर   होगा और   इसमें   दो   धड़े   होंगे —

———– चीन v / s अमेरिका ——-

-अब   इसमें   शेष   विश्व   और   भारत   की   क्या   स्थिति   है   ?  -विश्व   राजनीति की   शतरंज   में   महाशक्तियां   अपने  -क्या   क्या   मोहरे   चल   रहीं   हैं   ?
-भारत   की   स्थिति   क्या   है   ?
-क्यों   मोदी   ताबड़तोड़   विदेश   दौरे   कर   रहे   हैं  ?

*
संसाधनों   की   इस   होड़   में   हम   कहाँ   हैं   ?
आपको   बुरा   लगेगा   पर   सत्य   ये   है   कि   कहीं   नहीं   ।

क्यों ?

क्योंकि   आजादी   के   बाद   के   15  साल   हमने   नेहरू   की   बेवकूफाना आदर्शवादी   विदेश  नीति   की   भेंट   चढ़ा   दिये   और   तिब्बत   जैसे   कीमती संसाधन   को   खो   दिया   वरना   आज   चारों   ओर   से   भारत   से   घिरा  नेपाल भारत   का   हिस्सा   बन   चुका   होता   और   हिमालय   के   पूरे   संसाधनों   पर हमारा   कब्जा   होता   ।  इसके   बाद   से   शास्त्री   जी   के   लघु   शासनकाल   को छोड़कर   शेष   समय   सरकारें   विशेषतः   गांधी   खानदान   बिना   भविष्य   की ओर   देखे   सिर्फ   ”  प्रशासन   के   लिये   शासन   ”  करते   रहे   जिसमें   जनता सिर्फ   चुनिंदा   लोगों   के   लिये   वोटों   की   संख्या   और   उनकी   विलासिता  के लिये  ‘   उत्पादक   ‘   मात्र   थी   ।
दूसरी   ओर   विशाल   और   बढती   हुई   जनसंख्या   जिसके   लिये   इतने   संसाधन   जुटाना   असंभव   भी   है   खासतौर   पर   जब   देश   में   बहुसंख्यकों      के   प्रति   शत्रु   मानसिकता   रखने   वाली   20  करोड़   से   ज्यादा   की जनसंख्या व   एक   छोटा   पर   बहुत   प्रभावी   कुटिल   बिका   हुआ   देशद्रोही   बुद्धिजीवी   वर्ग हो   जो   राष्ट्रहित   की   प्रत्येक   नीति   में   रोड़े   अटकाता   हो   ।

भारत   की   स्थिति :  तो   कुल   मिला  कर   भारत   इस   समय   अभूतपूर्व   खतरे का   सामना   कर   रहा   है   ।

— दक्षिण   में   हिंद   महासागर   की   तरफ   से   भारत   सुरक्षित   है   पर   यह स्थिति   दिएगो   गर्सिया   पर   काबिज   अमेरिका   पर   निर्भर   है  |
— पश्चिम   में   पाकिस्तान
— पूर्व   में   बांग्लादेश
— उत्तर   में   स्वयं   चीन

— ‘ पांचवीं  दिशा ‘   का   खतरा   सबसे   भयानक   है   और   भारत   के   अंदर   ही मौजूद   है   ।  20  करोड़   की   भारत   विरोधी   सेना   ।

कश्मीर   में   पूरी   तरह   बढ़त   में   , केरल  में   निर्णायक   ,

—  पूर्वोत्तर   ,  असम   व   बंगाल   में   प्रबल   स्थिति   में   ,

—  उत्तरप्रदेश   और   बिहार   में   वे   कांटे   की   टक्कर   देने   की   स्थिति   में   है  ।
–शेष   भारत   में   भी   वे   विभिन्न   स्थानों   पर   परेशानी   खड़ा   करने   की स्थिति   में   हैं ।

** केरल   में   तो  वे ”  पॉपुलर  फ्रंट  ”  के   नाम   से   वे   सैन्य   रूप   भी   ले   चुके   हैं  ।

ये   वामपंथी   ,   ये   अरुंधती   टाइप   के   साहित्यकार   ,  भांड   टाइप   के   अभिनेता   और   महेश   भट्ट   जैसे   एडेलफोगैमस  लोग  ,  बिंदी  गैंग   आदि सऊदी   पैट्रो   डॉलर्स   और   चीन   के   हाथों   बिके   हुये   वे   लोग   हैं   जो   मोदी   का   रास्ता   रोकने   के   लिये   देशविरोधी   घरेलू   और   विदेशी   शक्तियों   का ‘ हरावल   दस्ता   ‘   है   ताकि   मोदी   की   गति   कम   करके   इस   ‘ Great Game ‘ में   पछाड़   जा   सके  ।

Now   great   game   is   near   to   start —–

भारत   को   छोड़  कर   शेष   विश्व   इस्लामिक   आतंकवाद   के   खिलाफ   खड़ा     हो   चुका   है   और   अब   वो   मृतप्रायः है  इस्लाम   का   संकुचन   अरब   देशों       में    पैट्रोल   के   खतम   होते   ही   प्रारम्भ   हो   जायेगा   ।

अब   मारामारी   शुरू   होगी   पानी   के   ऊपर   और   दुर्भाग्य   से   इसकी   शुरूआत भारत   से   ही   होगी   क्योंकि   चीन   ना   केवल   ब्रह्मपुत्र   नदी   पर   अपनी निर्णायक   पकड़   बना   चुका   है   बल्कि   यह   तक   कहा   जा   रहा   है   कि हिमालय   क्षेत्र   के   मौसम   और   ग्लेशियरों   को   प्रभावित   करने   की   टेक्नोलॉजी   विकसित   कर   चुका   है   ।
चीन   की   तीन   कमजोरी   हैं  —

1–निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था
2–टेक्नोलॉजी
3–हिंद महासागर

पहली   कमजोरी   से   निबटने   के   लिये   चीन   ने   विदेशी   मुद्रा   का   बड़ा   भंडार और   ट्रेजरी   बॉन्ड   खरीद   रखे   हैं   जिसके   जरिये   वह   अमेरिका   के   डॉलर  को अंतर्राष्ट्रीय   बाजार   में   दो   दिन   में   कौड़ियों   के   भाव   का   कर   सकता   है  परंतु   भारत   के   संदर्भ   में   उसका   कदम   उल्टा   बैठेगा   और   साथ   ही   भारत चीन   के   माल   पर   किसी   भी  ‘  बहाने  ‘   से   रोक   लगा  कर   उसकी अर्थव्यवस्था   को   गड्ढे   में   धकेल   सकता   है   ।  इसलिये   आर्थिक   मोर्चे   पर तो   सभी  पक्ष  ”  रैगिंग   वाली   रेल   ”  बने   रहेंगे   जिसमें   झगड़ा   बस   इस   बात   का   है   कि  ” इंजन ”  कौन   बनेगा   और  ”  पीछे  वाला   डिब्बा   ”   कौन रहेगा  ।
( मेहरबानी   करके   रैगिंग   की   रेल   का   मतलब   ना   पूछियेगा  )

अब   बात   टेक्नोलॉजी   की   जिसमें   चीन   दिन  रात  एक   किये   हुए   है  पर मिसाइल   और   न्यूक्लियर   टेक्नीक   को   छोड़  कर   वह   पश्चिम   के   सामने कहीं   नहीं   टिकता   विशेषतः   सामरिक   तकनीक   के   क्षेत्र   में   । इसीलिये   चीन ” पश्चिम   की   सामरिक   तकनीक   के   गले   की   नस   ”  अर्थात टेलीकम्यूनिकेशन   को   बर्बाद   करने   के   लिये   ”   सैटेलाइट   किलर   मिसाइल्स ” का   सफल   परीक्षण   कर   चुका   है   जिसके   जवाब   में   अमेरिका   ने   ”  नैनो सैटेलाइट   ”  लॉन्च   किये   हैं   । यानि   इस   क्षेत्र   में   पश्चिम   अभी   भी   भारी बढ़त   में   है   परंतु   चीन   और   पश्चिम   दोनों   ही   जानते   हैं   कि   टैक्नोलॉजी   से   चीन   को   रोका   तो   जा   सकता   है   पर   निर्णायक   रूप   से   परास्त   नहीं किया   जा   सकता  ।

अब   तीसरी   कमजोरी   ‘ हिंद  महासागर  ‘  और  उसमे   भारत , अमेरिका  और ऑस्ट्रेलिया   का   प्रभुत्व   जिसके   तोड़   के   रूप   में   चीन   ने   ”   पर्ल   स्ट्रिंग ” विकसित   की   है   जिसका    एक   सिरा   पाकिस्तान   स्थित   ‘  ग्वादर   बंदरगाह ‘ है   तो   दूसरा   सिरा  ‘  सेशेल्स  ‘  में   है  ।  इसके   बावजूद   भारत   अंडमान  स्थित नौसैनिक   अड्डे   से   पूरे   हिंद  महासागर   में   चीन   पर   बढ़त   में   है   और   बाकी   का   काम   मोदी   ने   ताबड़  तोड़   विदेश   दौरों   और   सफल   कूटनीति  से कर  दिया  ।  जरा   याद   कीजिये   विदेश   दौरों   में   देशों   का   क्रम   और अब  ऑस्ट्रेलिया   , जापान , विएतनाम , भारत ,  दक्षिण अफ्रीका   और   अमेरिका  के साथ   एक   हिंद  महासागरीय    संगठन   बनाने   की   कोशिश   हो   रही   है   जो चीन   की   ‘  पर्ल   स्ट्रिंग   ‘  का   मुंह  तोड़   जवाब   होगी   ।हालांकि   ऑस्ट्रेलिया   की   झिझक   के   कारण   इसका   सैन्य  स्वरूप   विकसित  नहीं   हो   पाया   है  ।

इस   तरह   चीन   को   घेरने   के   बावजूद   अपनी   ”  हीन    जातियता  ”  पर आधारित   विशाल   जनशक्ति   के   कारण   पश्चिम   उस पर  निर्णायक   विजय हासिल   नहीं   कर   सकता   । उस  पर  विजय   पाने   का   एकमात्र   तरीका   जमीन के   रास्ते   से   हमला   करना   ही   है   जिसके   मात्र   तीन   रास्ते   हैं   ।
1- रूस  द्वारा  मध्य  एशिया  की  ओर  से
2- पाकिस्तान   के   रास्ते
3- भारत   की   ओर   से

–अब   आपको   समझ   आ   गया   होगा   कि   चीन   रूस   की   खुशामद   क्यों   कर  रहा   है   और   क्यूँ   अपनी   पूर्वनीति   के   विपरीत   सीरिया   में  रूस   के   साथ   कंधे   से   कंधा   मिला  कर ‘  एयर  स्ट्राइक  ‘  में   भाग   लेने   को   तैयार     हो   गया   है  ।  चीन   का   पूरा   पूरा   प्रयास   रूस   के   साथ   गठ   बंधन   करने   का    या   कम   से   कम   उसे  ‘ न्यूट्रल ‘  रखने   का   होगा   ताकि   रूस   की   ओर से   निश्चिंत   हो   सके  ।
–पाकिस्तान   की   तरफ   के   रास्ते   को   चीन   POK   में   सैन्य   जमावड़ा   करके और   ग्वादर   तक   अबाध   सैन्य  सप्लाई   की   व्यवस्था   द्वारा   बंद   कर  चुका  है । अगर   सियाचिन   पाकिस्तान   के   कब्जे   में   पहुंच   गया   तो   चीन   इस   पूरे क्षेत्र   को   पूरी   तरह  ” लॉक ”  कर   देगा  ।
–भारत   के   संदर्भ   में   दोनों   पक्ष   जानते   हैं   कि   समझौता   संभव   नहीं क्योंकि   ‘ तिब्बत  की  फांस  ‘  दोनों   के   गले   में   अड़ी   है   ।   भारत   को हतोत्साहित   करने   और   सामरिक   रूप   से   निर्णायक   महत्वपूर्ण   स्थानों      को   कब्जा   करने   हेतु   ही   वह   अक्सर   सीमा   उल्लंघन   करता   रहता  है ।

तो   कुल   मिला  कर ‘ भारत ‘  ही   है   जो   चीन   को   रोकने   के   लिये   पश्चिम   का   ‘  प्रभावी   हथियार  ‘  बन   सकता   है   और   यही   कारण   है   कि   पश्चिमी देश  भारत   में   इतना  ‘ इंट्रेस्ट ‘  दिखा   रहे   हैं ।
पश्चिम   की   इस   विवशता   को   मोदी   ने   पकड़   लिया   है   इसीलिये   संघर्ष   से पूर्व   ‘ अर्थववस्था   और   सैन्य   टेक्नोलॉजी   ‘  की   दृष्टि   से   सक्षम   बना   देना चाहते   हैं   इसीलिये   उनके   दौरों   में   निरंतर   दो   बातें   परिलक्षित   हो   रहीं   हैं – आर्थिक   निवेश   और   हथियारों   की   ताबड़तोड़   खरीदी   के  साथ   सैन्य टेक्नोलॉजी   का   हस्तांतरण  ।
इसी   तरह   कूटनीतिक   विदेश   दौरों   के   द्वारा   लामबंद   करते   हुए   चीन   विरोधी   पूर्वी   देशों   का   संगठित   करने   की   कोशिश   करते   हुए   चीन   के   ‘ पर्ल   स्ट्रिंग   ‘  को   तोड़   दिया   है   जिससे   चिढकर   ही   चीन   ने   नेपाल   में मधेशियों   के   विरुद्ध   माहौल   खड़ा  कर   भारत   के   नेपाल   में   बढ़ते   प्रभाव     को   रोका   है   और   इसका   असर   मोदी   पर   इंग्लैंड   दौरे   के   दौरान   दिखाई दिया ।

भारत की तैयारियां —

1– भारी मात्रा में निवेश को आमंत्रित करना ।
2– आर्थिक मोर्चे पर सुदृढ़ता हासिल करना ।
( सेनायें भूखे पेट युद्ध नहीं कर सकतीं )
3– नौसेना का आधुनिकीकरण
4– वायुसेना को एशिया में सर्वश्रेष्ठ बनाना और उज़्बेकिस्तान में भारत के सैन्य हवाई ठिकाने को मजबूत बनाना
5– अंतरमहाद्वीपीय तथा मल्टीपल वारहैड मिसाइलों का विकास व आणविक शस्त्रागारों का विकास ।
6– बलूचिस्तान व अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को बढ़ाना ।
7– इलैक्ट्रोनिक वार के लिए ” काली 5000 ” जैसी तकनीक का उन्नतीकरण ।
8– अंतरिक्षीय संसाधनों के उपयोग की संभावनाओं के मुद्देनजर ” मार्स मिशन ” व अन्य ” अंतरिक्ष कार्यक्रमों ” का संचालन ।

पर  इतनी   तैयारियों   के   बावजूद   अभी   भी   भारत   बहुत   पिछड़ा   हुआ   है   और   पश्चिमी   शक्तियों   के   ऊपर   निर्भर   है   और   उसे   निर्भर   रहना   पड़ेगा ।

अब   कल्पना   कीजिये   कि   भारत   में   किसी   भी   मुद्दे   पर   देशव्यापी  दंगे  शुरू हो   जाते   हैं   और   उसी   समय   पाकिस्तान   भी   अघोषित   हमला   शुरू  कर  देता   जिसे   समर्थन   देते   हुये   चीन   भी   अपने   दावे   के   अनुसार  अरुणाचल पर   कब्जा   कर   लेता   है   और   लद्दाख   में   भी   घुस   जाता   है  । अब   बताइये भारत   क्या   करेगा  ?
भारत   के   पास   ले   देकर  11   लाख   रेगुलर  आर्मी  और   32   लाख रिजर्व आर्मी है   जबकि   चीन   की   वास्तविक   सैन्य   संख्या   हमारी   कल्पना   से   परे   है । और   फिलहाल   चीन   अपने   खरीदे   हुए   भारतीय   बुद्धि  जीवियों   द्वारा   और सऊदी   फंड   से   प्रायोजित   मुस्लिमों   व  ‘  सैक्यूलर   राजनेताओं  ‘  द्वारा   भारत में   ही   भारत  के  विरुद्ध  ‘  अप्रत्यक्ष  युद्ध  ‘  छेड़  चुका   है  और   इसका  अगला कदम  होगा  ‘  गृह  युद्ध  ‘  जिसका   एक   लघुरूप   हम  पश्चिमी   उत्तरप्रदेश  में   देख चुके   है  ।  अगर   ये   गृहयुद्ध   शुरू   होता   है   और   यकीन   मानिये   वो  होगा  ही ‘ और   यह   होगा   संसाधनों   ‘  के   लिये   परंतु   ‘  धर्म  ‘   के   नाम   पर   होगा ।  इस   स्थिति   का   फायदा   उठाने   से   पाकिस्तान   नहीं   चूकेगा   और   ऐसी स्थिति   में   अगर   चीन   भी   मैदान   में   उतरा   तो   अमेरिका   व   पश्चिम   को   भी   हस्तक्षेप   करना   पड़ेगा   और   यह   तीसरे   विश्वयुद्ध   की   शुरूआत   होगी

तो पूरा परिदृश्य क्या हो सकता है —

एक तरफ चीन + पाकिस्तान + अरब देश
दूसरी ओर अमेरिका + इजरायल +यूरोप +जापान

रूस   संभवतः   तटस्थ   रहेगा   लेकिन   अगर   वह   चीन   के   साथ   कोई   गुट बनाता   है  ,  चाहे   वह   आर्थिक   गुट   ( शंघाई सहयोग संगठन )  या   सैन्य   गुट   ( जिसकी   शुरूआत   सीरिया   में   दिख   रही   है   )  तो   चीन   बहुत   भारी  पड़ेगा ।
इस   परिस्थिति   में   भारत   के   सामने   अमेरिका   के   सहयोग   करने   के   अलावा   कोई   चारा   नहीं   और   ना   ही   पश्चिम   के   पास   भारत   जैसी   विशाल मानव   शक्ति   है   और   यही   कारण   है   कि   पश्चिमी   शक्तियां   आज   मोदी  की तारीफों   के   पुल   बांध   रही   हैं  ,   भारी   निवेश   कर   रहीं   हैं   (  बुलेट   ट्रेन   में जापान   की   उदार   शर्तों   के   बारे   में   पढ़िये  )  और   सैन्य   तकनीक   का हस्तांतरण   कर   रहीं   हैं   जबकि   इजरायल   द्वारा   चीन   को   ” अवाक्स राडार ” देने   से   मना   कर   दिया   जाता   है  ।

मोदी   की   कोशिश   है   कि   इस   स्थिति   के   आने   से   पूर्व   ही   भारत   को पश्चिम   की   ‘आर्थिक   व   सैन्य   मजबूरी   ‘   बना   दिया   जाये   और   मोदी   की सारी   व्याकुलता   ,  बैचैनी   और   तूफानी   विदेश   दौरे   उसी  ” महासंघर्ष ”  की तैयारी   के   लिये   हैं   ना   कि   ‘ तफ़रीह ‘  के   लिये   ।  मोदी की   कोशिश   चीन   से त्रस्त   वियतनाम   ,  म्यामां , मंगोलिया , इंडोनेशिया , जापान  आदि   देशों   के   साथ   मिल  कर   आक्रामक   तरीके   से   घेरने   की   भी   है   और   पहली   बार भारत   ने   चीन   को   विएतनाम    सागर   जिसे   चीन   दक्षिण   चीन   सागर कहता   है  ,  में   दबंगई   से   अंगूठा   दिखाया   है  ।   ये   है   मोदी   की   विदेश   दौरों   की   कूटनीति   का   परिणाम ।

तो   मोदी   के   नादान   और   अधीर   समर्थको   ,  समझ   गये   ना  कि   मोदी विदेश   दौरे   पर   दौरे   क्यों   कर   रहे   हैं   ?

तो दोस्तो —
– रामलला को कुछ दिन और तंबू में रह लेने दो
– कुछ दिन और गायमाता का दर्द बर्दाश्त कर लो
– कुछ दिन और समान संहिता का इंतजार कर लो
– कुछ दिन और कश्मीरी पंडितों की तकलीफ झेलो
– कुछ दिन और महंगी रोटी पैट्रोल से गुजारा करो

क्योंकि —

-पहले, भारत को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना है
–दूसरा , भारत को सैन्य महाशक्ति बंन जाने दो
— तीसरा , भारत को आंतरिक शत्रुओं से निबटने लायक क्षमता हासिल करने दो ।
— चौथे , तुम खुद अपने आपको गृहयुद्ध की स्थिति में दोहरे आक्रमण का प्रतिरोध करने लायक तैयार कर लो

क्योंकि
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